सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (Suryakant Tripathi)
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (Suryakant Tripathi)
इस पोस्ट की PDF को नीचे दिये लिंक्स से download किया जा सकता है।
जीवन-परिचय
हिन्दी के प्रमुख छायावादी कवि पं० सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म महिषा-दल, स्टेट मेदनीपुर (बंगाल) में 1897 ई० की बसन्त पंचमी को हुआ था। वैसे ये उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढकोला गाँव के निवासी थे। इनके पिता पं० रामसहाय त्रिपाठी थे। ये कान्यकूब्ज ब्राह्मण थे इनकी शिक्षा-दीक्षा बंगाल में हुई थी। 13 वर्ष की अल्पायु में इनका विवाह हो गया था। इनकी पत्नी बड़ी विदुषी और संगीतज्ञ थीं ठन्हीं के संसर्ग में रहकर इनकी रुचि हिन्दी साहित्य और संगीत की ओर हुई। निराला जी ने हिन्दी, बंगला और संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। 22 वर्ष की अवस्था में ही यत्नी का देहान्त हो जाने पर अत्यन्त ही खिन्न होकर इन्होंने महिषादल स्टेट को नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और स्वच्छन्द रूप से काव्य-साधना में लग गये। इन्होंने ‘समन्वय’ और ‘मतवाला’ नामक पत्रों का सम्पादन किया। इनका सम्पूर्ण जीवन संघर्षों में ही बीता और जीवन के अन्तिम दिनों तक ये आर्थिक संकट में घिरे रहे। 1961 ई० में इनका देहान्त हो गया।
रचनाएँ
निराला जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कविता के अतिरिक्त इन्होंने उपन्यास, कहानी, निबन्ध, आलोचना और संस्मरण आदि विभिन्न विधाओं में भी अपनी लेखनी चलायी। परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, अपरा, वेला, नये पत्ते, आराधना, अर्चना आदि इनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं। इनकी अत्यन्त प्रसिद्ध काव्य-रचना ‘जुही की कली’ है। लिली, चतुरी चमार, सुकुल की बीबी (कहानी संग्रह) एवं अप्सरा, अलका, प्रभावती इनके महत्त्वपूर्ण उपन्यास हैं।
काव्यगत विशेषताएँ
(क) भाव-पक्ष- 1. हिंदी साहित्य में निराला मुक्त वृत्त परंपरा के प्रवर्तक माने जाते हैं। 2. इनके काव्य में भाषा, भाव और छन्द तीनों समन्वित हैं। 3. ये स्वामी विवेकानन्द और स्वामी रामकृष्ण परमहंस की दार्शनिक विचारधारा से बहुत प्रभावित थे। 4,. निराला के काव्य में बुद्धिवाद और हृदय का सुन्दर समन्वय है। 5, छायावाद, रहस्यवाद और प्रगतिवाद तीनों क्षेत्रों में निराला का अपना विशिष्ट महत्वपूर्ण स्थान है। 6. इनकी रचनाओं में राष्ट्रीय प्रेरणा का स्वर भी मुखर हुआ है। 7. छायावादी कवि होने के कारण निराला का प्रकृति से अटूट प्रेम है। इन्होंने प्रकृति-चित्रण में प्रसाद जी की भाँति ही मानवीय भावों का आरोप करते हुए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
(ख) कला-पक्ष- (1) भाषा-शैली- निराला जी की भाषा संस्कृतगर्भित खड़ीबाली है। यत्र-तत्र बंगला भाषा के शब्दों का भी प्रयोग मिल जाता है। इनकी रचनाओं में उर्दू और फारसी के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं। इनके काव्य में जहाँ हृदयगत भावोॉँ की प्रधानता है वहाँ भाषा सरल, मुहावरेदार और प्रवाहपूर्ण है। निराला के काव्य में प्राय: तीन प्रकार की शैलियों के दर्शन होते हैं-
(i) सरल और सुबोध शैली- (प्रगतिवादी रचनाओं में)
(ii) क्लिष्ट और दुरूह शैली- (रहस्यवादी एवं छायावादी रचनाओं में)
(iii) हास्य-व्यंग्यपूर्ण शैली- (हास्य-व्यंग्यपूर्ण रचनाओं में)
(2) रस-छन्द-अलंकार- निराला के काव्य में श्रृंगार, वीर, रौद्र और हास्य रस का सुन्दर और स्वाभाविक ढंग से परिपाक हुआ है। निराला जी परम्परागत काव्य छन्दों से सर्वथा भिन्न छन्दों के प्रवर्तक माने जाते हैं। इनके मुक्तछन्द दो प्रकार के हैं। (1) तुकान्त (2) अतुकान्त । दोनों प्रकार के छन्दों में लय और धवनि का विशेष ध्यान रखा गया है।
अलंकारों के प्रति निराला जी की विशेष रुचि दिखलाई नहीं पड़ती। इन्होंने प्राचीन और नवीन दोनों प्रकार के उपमान का प्रयोग किया है। मानवीकरण और विशेषण जैसे अंग्रेजी के अलंकारों का भी इनके काव्य में प्रयोग मिलता है।
साहित्य में स्थान
निराला जी हिन्दी साहित्य के बहुप्रतिभा सम्पन्न कलाकार एवं साहित्यकार हैं। इन्होंने अपने परम्परागत क्रान्तिकारी स्वच्छन्द मुक्त काव्य-योजना का निर्माण किया। समय के परिवर्तन के साथ-साथ इनके काव्य में भी छायावाद, रहस्यवाद आर प्रगतवाद के दर्शन हुए हैं। सब कछ मिलाकर निराला भारतीय संस्कृति के युगद्रष्टा कवि हैं। छायावादी चार कवियां (प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा) में इनका प्रमुख स्थान है।
स्मरणीय तथ्य
जन्म- 1897 ई०, मेदनीपुर (बंगाल) ।
मृत्यु– 1961 ई०।
पिता- पं० रामसहाय त्रिपाठी।
रचना- ‘राम की शक्ति-पूजा’, ‘तुलसीदास’, ‘अपरा, ‘अनामिका’, ‘अणिमा’ ‘गीतिका’, ‘अर्चना’, ‘परिमल, ‘अप्सरा, ‘अलका’ ।
काव्यगत विशेषताएँ
वर्ण्य-विषय- छायावाद, रहस्यवाद, प्रगतिवाद, प्रकृति के प्रति तादात्म्य का भाव।
भाषा- खड़ीबोली जिसमें संस्कृत शब्दों की बहुलता है। उदर्दू व अंग्रेजी के शब्दों तथा मुहावरों का प्रयोग।
शेली- 1. दुरूह शैली, 2. सरल शैली।
छन्द- तुकान्त, अतुकान्त, रबर छन्द।
अलंकार- उपमा, रूपक, अतिशयोक्ति, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय आदि।
For Download – Click Here
महत्वपूर्ण लिंक
- भारतीय संविधान की विशेषताएँ
- जेट प्रवाह (Jet Streams)
- चट्टानों के प्रकार
- भारतीय जलवायु की प्रमुख विशेषताएँ (SALIENT FEATURES)
- Indian Citizenship
- अभिभावक शिक्षक संघ (PTA meeting in hindi)
- कम्प्यूटर का इतिहास (History of Computer)
- कम्प्यूटर की पीढ़ियाँ (Generations of Computer)
- कम्प्यूटर्स के प्रकार (Types of Computers )
- अमेरिका की क्रांति
- माया सभ्यता
- हरित क्रान्ति क्या है?
- हरित क्रान्ति की उपलब्धियां एवं विशेषताएं
- हरित क्रांति के दोष अथवा समस्याएं
- द्वितीय हरित क्रांति
- भारत की प्रमुख भाषाएँ और भाषा प्रदेश
- वनों के लाभ (Advantages of Forests)
- श्वेत क्रान्ति (White Revolution)
- ऊर्जा संकट
- प्रमुख गवर्नर जनरल एवं वायसराय के कार्यकाल की घटनाएँ
- INTRODUCTION TO COMMERCIAL ORGANISATIONS
- Parasitic Protozoa and Human Disease
- गतिक संतुलन संकल्पना Dynamic Equilibrium concept
- भूमण्डलीय ऊष्मन( Global Warming)|भूमंडलीय ऊष्मन द्वारा उत्पन्न समस्याएँ|भूमंडलीय ऊष्मन के कारक
- भूमंडलीकरण (वैश्वीकरण)
- मानव अधिवास तंत्र
- इंग्लॅण्ड की क्रांति
- प्राचीन भारतीय राजनीति की प्रमुख विशेषताएँ
- प्रथम अध्याय – प्रस्तावना
- द्वितीय अध्याय – प्रयागराज की भौगोलिक तथा सामाजिक स्थित
- तृतीय अध्याय – प्रयागराज के सांस्कृतिक विकास का कुम्भ मेल से संबंध
- चतुर्थ अध्याय – कुम्भ की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
- पंचम अध्याय – गंगा नदी का पर्यावरणीय प्रवाह और कुम्भ मेले के बीच का सम्बंध
Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है | हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है| यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com