विश्व का इतिहास / World History

कैल्डियन सभ्यता- धर्म एवं दर्शन, कला एवं स्थापत्य, बौद्धिक उपलब्धियां, कैल्डियन सभ्यता की महत्ता एवं देन

कैल्डियन सभ्यता

कैल्डियन सभ्यता की स्थापना से मेसोपटामिया की सभ्यता अपने चौथे एवं अन्तिम चरण पर पहुंची है। ब्रेस्टेड तथा लूकस कैल्डियन सम्यता को मेसोपोटामिया के तीसरे चरण की ही सभ्यता मानते हैं। इस सभ्यता के संस्थापक एरेमियन जाति के ही थे और उन्हीं के साथ बेबिलोन में प्रविष्ट हुए थे। ये बेबिलोन  के जिस दक्षिणी भूभाग में रहते थे, उसे असीरियन कल्दु, बेबिलोनियन कस्दु तथा हिब्रू कस्दिम कहते थे। इन्हें कैल्डियन जातिवाची संज्ञा इसी भूभाग के नाम के आधार पर मिली। कैल्डियनों ने अपने राजनीतिक क्रियाकलापों का केन्द्र बेबिलोन को बनाया और प्राचीन बेबिलोनियन सभ्यता को ही पुनर्जीर्वित करने की चेष्टा की, इसलिए इनके द्वारा स्थापित सभ्यता भी बेबिलोनियन सभ्यता के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसे प्राचीन बेबिलोनियन सभ्यता से पृथक करने के लिए नव-बेबिलोनियन सभ्यता नाम दिया गया।

 

धर्म एवं दर्शन

कैल्डियनों ने बेबिलोन को अपनी शक्ति का केन्द्र बना कर प्राचीन बेबिलोनियन सभ्यता एवं संस्कृति को नवजीवन प्रदान करने का यत्न किया। सांस्कृतिक तत्त्वों को एक बार पुनः कैल्डियनों के हाथ नया जीवन मिला। लेकिन हम्मूराबी से नेबुसद्रेज्जर द्वितीय के काल तक पश्चिमी एशिया में हुए राजनीतिक परिवर्तनों एवं असीरियन रूपान्तरण के फलस्वरूप बेबिलोनियन धर्म एवं जीवन दर्शन में अनेक आधारभूत एवं अमिट परिवर्तन हो गए थे। इन्हें पूर्णतया समाप्त कर पुरातन आदर्शों को प्रतिष्ठित करना इनके लिए सरल नहीं था। इसी कारण कैल्डियन अपने लक्ष्य में बहुत सफल नहीं दिखाई पड़ते। लेकिन यह असफलता इन्हें केवल मूल तत्त्वों की स्थापना में ही मिली। प्राचीन बेबिलोनियन सभ्यता के बाह्य तत्त्वों – उदाहरणार्थ शासनतन्त्र, आर्थिक संगठन, विशेषकर वाणिज्य एवं उद्योग धन्धे, साहित्य, कला इत्यादि को पुनः विकसित करने में इन्हें उल्लेखनीय सफलता मिली। इसीलिए मेसोपोटामिया के इतिहास में कैल्डियनों के शासनकाल को नव बेबिलोनियन अथवा कैल्डियन पुनर्जागरण युग भी कहा जाता है। लेकिन कैल्डियन पुनर्जागरण की असफलता का ज्वलन्त प्रमाण इनका धर्म एवं दर्शन हैं।

कैल्डियनों ने प्राचीन बेबिलोनियन धर्म के केवल बाह्य तत्त्वों को ग्रहण किया। उदाहरणार्थ मार्दुक देवता यहां भी प्रतिष्ठित किये गये लेकिन यह धर्म का केवल बाह्य तत्त्व था। प्राचीन बेबिलोनियन एवं कैल्डियन देवताओं के स्वरूप एवं व्यक्तित्व में पर्याप्त अन्तर था। बेबिलोनियन देवी देवता मानवी आकांक्षाओं एवं प्रेरणाओं से ओत-प्रोत उनकी दुर्बलताओं से परे न होते हुए अमत्त्य थे तथा वे उपासना, पूजा एवं अभिचार के माध्यम से अनुकूल किए जा सकते थे। उनका सम्बन्ध इसी लोक से स्वीकार किया गया था। इसके विपरीत कैल्डियन देवी-देवता मानवीय गुणों से वंचित, उत्कृष्ट, ज्ञानातीत तथा सर्वशक्तिमान थे। इन्हें अभिचार, पूजा-उपासना आदि के द्वारा अनुकूल नहीं बनाया जा सकता। इनका सम्बन्ध विभिन्न ग्रहों से स्थापित किया गया। इसीलिए कैल्डियन धर्म एक प्रकार का नक्षत्रीय धर्म बन गया। देवताओं के प्रति इस प्रकार के विश्वास एवं आस्था के फलस्वरूप कैल्डियन धर्म में भाग्यवाद, आध्यात्मवाद एवं निराशावाद का उदय हुआ। प्राचीन बेबिलोनियन धर्म में व्यक्तिगत अथवा सामूहिक विपत्ति का कर्ता देवता स्वीकार किया गया। इसीलिए जब बेबिलोनियन देवी-देवता की उपासना करते थे, तो उनका उद्देश्य केवल इन विपत्तियों को दूर भगाना था। इस प्रकार की प्रवृत्ति कैल्डियनों में भी दिखाई पड़ती है। ये भी मानते थे कि मनुष्य दैवी प्रेरणा एवं इच्छा से ही समृद्धि प्राप्त करता है अथवा विपत्तियों से ग्रसित होता है। लेकिन कैल्डियनों ने एक नवीन मान्यता विकसित की। अब भविष्य का निर्माण तथा वर्तमान का नियमन दोनों ईश्वर की इच्छा पर छोड़ दिया गया। इसे मनुष्य उपासना अथवा अभिचार द्वारा बदल नहीं सकता था। इसी पृष्ठभूमि में कैल्डियन भाग्यवाद का उदय हुआ, जो अपने ढंग का प्राचीनतम उदाहरण है। प्रश्न है कि क्या देवताओं के प्रति इस आत्मसमर्पण की प्रवृत्ति की पृष्ठभूमि में कैल्डियनों की कोई स्वार्थ भावना छिपी थी। अर्थात देवताओं एवं दैवी इच्छाओं को सर्वोपरि मानकर कैल्डियन लौकिक अथवा पारलौकिक इच्छाओं की पूर्ति तो नहीं करना चाहते थे? इस प्रकार के प्रश्न उठाए जाने का कारण यह भी है कि कैल्डियनों के पूर्व मेसोपोटामिया सभ्यताओं में इस प्रकार की भावनाएं विद्यमान थीं। लेकिन हम कह सकते हैं कि कैल्डियनों में इस प्रकार की स्वार्थमयी भावनाएं न विकसित हो सकीं। कैल्डियनों की पारलौकिक जीवन में तनिक भी न तो आस्था थी, न इस आत्मसमर्पण एवं नियतिवाद के मूल में इनकी कोई पारलौकिक इच्छा छिपी थी। वास्तव में कैल्डियन केवल देवताओं के रहस्य को न समझ सकने के कारण भाग्यवादी थे।

नक्षत्रधर्म एवं भाग्यवाद के विकास के फलस्वरूप इनके धर्म में आध्यात्मवाद का संचार हुआ। प्रस्तुत प्रसंग में इस बात की चर्चा की जा सकती है कि कैल्डियनों के पूर्व मेसोपोटामियन सभ्यताओं में इस प्रकार के तत्त्व अविकसित थे अर्थात कैल्डियन घर्म के पूर्व का मेसोपोटामिया धर्म लौकिक था, लेकिन कैल्डियन पूजागीतों तथा स्तुतियों से प्रतीत होता है कि ये देवता को मानवीय गुणों से ऊपर मानते थे । ये पाप, पुण्य, सदाचार तथा अनाचार इत्यादि के द्रष्टा तथा पर्यवेक्षक माने गए। अब ये मानने लगे कि मनुष्य को स्वयं पुण्याचरण करना चाहिए तथा पाप से बचना चाहिए। दैवी शक्ति केवल इसका निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण करती है। वर्तमान समय में हम यह नहीं कह सकते कि कैल्डियनों का सदाचार से वास्तविक मन्तव्य क्या था? कैल्डियनों की ये सदाचारपरक प्रार्थनाएं हिब्रू धर्म में भी किंचित अन्तर के साथ मिलती हैं। इन दैवी मान्यताओं के फलस्वरूप कैल्डियन धर्म में देवताओं का स्थान अत्यन्त उत्कृष्ट हो गया। मनुष्य एक हय एवं असहाय प्राणी बन गया। अब मनुष्य ग्रहों में रहने वाले भाग्यविधाता, सर्वशक्तिमान एवं ज्ञानातीत देवताओं की अपेक्षा हीन एवं सत्कर्मविहीन हो गया। इसके लिए देवत्व एक दुर्लभ वस्तु हो गई। कैल्डियन अपने को एक बन्दी मानने लगे जिसके हाथ-पैर जकड़ दिये गये थे और जिसके पास मुक्ति का कोई उपाय नहीं था। दुख की इतनी करुण कल्पना कभी नहीं की गई थी। अब ये मानने लगे कि मनुष्य पाप का आचरण अपने स्वभाव के कारण करता है। कैल्डियनों की इस प्रकार की हेयता की भावना इनके निराशावाद में बदली। कैल्डियन निराशावाद के सम्बन्ध में एक प्रश्न उठाया जा सकता है कि इसका प्रभाव इनके सदाचार पर कहा तक पड़ा? वास्तव में कैल्डियन सभ्यता की पूर्ववर्ती मेसोपोटामिया की तीनों सभ्यताओं में लौकिकता को इतनी अधिक महत्ता मिली थी कि वहां नैतिकता एवं सदाचार का वास्तविक अर्थ में विकास हो ही न सका। एतदर्थ चिरसंचित अतीत की पृष्ठभूमि में कैल्डियन संस्कृति में विकसित नैतिकता प्रौढ़ एवं पुष्ट हो ही नहीं सकती थी, इसीलिए कैल्डियन निराश अवश्य हुए, लेकिन शरीर को कष्ट देना इन्हें स्वीकार्य न था। तपश्चर्या, ब्रतादि जो जीवन के प्रति निराश व्यक्ति के लक्षण हैं, कैल्डियनों में नहीं मिलते। कैल्डियन उतने ही लौकिक इच्छाओं की पूर्ति के आकांक्षी तथा भोगविलासी थे जितने दूसरे लोग थे। कैल्डियन साहित्य में जो स्तुतियां तथा प्रार्थनाएं हैं, उनमें यदि एक ओर श्रद्धा, दया एवं शुचिता का उल्लेख गुणों के रूप में किया गया है। तो दूसरी ओर अत्याचार, मिथ्यापवाद तथा क्रोध को दुर्गुणों के रूप में स्वीकार किया गया है। लेकिन इनका सम्बन्ध आनुष्ठानिक शुचिता और अशुचिता से था जिनका उद्देश्य भौतिक समृद्धियां प्राप्त करना था, न कि किसी नैतिकता अथवा अनैतिकता से।

 

कला एवं स्थापत्य

धर्म एवं दर्शन के अतिरिक्त कैल्डियनों की प्रगति कला एवं स्थापत्य में दिखाई पड़ती है। कैल्डियनों ने वास्तुकला में विशेष उन्नति की थी। कैल्डियन शासकों में नेबोपोलस्सर, नेबुसद्रेज्जर द्वितीय तथा नेबु-नैद निर्माता के रूप में विशेष प्रसिद्ध हैं। इनके द्वारा बनवाये गए भवनों, प्राचीरों तथा झुलते हुए बाग के कारण बेबिलोन समस्त विश्व में प्रसिद्ध हो गया। यूनानी इतिहासकार होरोडोटस बेबिलोन के वैभव से अत्यधिक प्रभावित था। इसके अनुसार बेबिलोन का क्षेत्रफल 5,17 ,996 हेक्टेयर था। संभवतः इसमें नगर के चारों ओर स्थित कृषि-भूमि को भी सम्मिलित कर लिया गया था। नगर को चारों ओर से एक दीवार से घेर दिया गया था, जिसकी लम्बाई 90.16 किलोमीटर तथा चौड़ाई इतनी थी कि इस पर चार घोड़ों द्वारा खींचा जाने वाला रथ सरलतापूर्वक चल सकता था। हेरोडोटस के विवरण के आधार पर हम बेबिलोन नगर की समृद्धि का अनुमान लगा सकते हैं ।

कैल्डियन युग के भवन नेबोपोलस्सर के समय से बनने प्रारम्भ हुए। इस शासक ने एक राजप्रासाद निर्मित कराया तथा बेबितोन नगर के पुनर्निर्माण की योजना बनायी, लेकिन संभवतः ये कार्य इसके समय में पूर्ण नहीं हो सके थे अतएव इसके पूर्ण करने का महत्वपूर्ण कार्य इसके उत्तराधिकारी नेबुसङ्रेज्जर द्वितीय ने किया। इसने राजप्रासाद को पूर्ण वर नगर के नवनिर्माण की योजना को साकार रूप दिया। प्राचीन प्राचीर को पूरा कर एक नई प्राचीर बनवायी गई, जिसकी लम्बाई हेरोडोटस के अनुसार 90.16 किलोमीटर थी। दोनों दीवालों के बीच में एक उपयुक्त एवं सुरक्षित स्थान चुना गया। वहां ईट का एक विस्तृत चबूतरा बनाया गया और उसी पर एक विशाल दुर्ग। नेबुसद्रेज्जर द्वितीय ने इस विशाल प्राचीर के अतिरिक्त अन्य कई दीवारें तथा खाइयां बनवायीं थीं जिससे बेबिलोन नगर पूर्णतया सरक्षित हो गया था। नेबुसद्रेज्जर द्वितीय द्वारा निर्मित विशाल जिगुरत की, जिसे टावर ऑव बाबेल के नाम से प्रसिद्धि मिली है, ऊंचाई पिरामिड से भी अधिक थी। इसमें सात मंजिलें थीं। सबसे ऊपरी मंजिल में एक चबूतरा बनाया गया था। इसके पास एक अलकृत शैय्या रहती थी। इस पर प्रति रात्रि ईश्वर की कृपाकांक्षी कोई र्त्री विश्राम करती थी। टावर ऑव बाबेल से 546 मीटर उत्तर कस्र का टीला था। इसी पर नेबुसद्रेज्जर द्वितीय ने अपना विशाल राजप्रासाद बनवाया था। राजप्रासाद की दीवारें आकर्षक पीली ईटॉं से बनायी गई थीं। फर्श बढ़िया श्वेत पत्थरों से अलंकृत थी। द्वार पर भीमाकार सिंह की मूर्तियां बनायी गई थीं। राजप्रासाद के निकट नेबुसद्रेज्जर द्वितीय का झूलता हुआ उपवन (हैगिंग गार्डन) स्थित था। यह उपवन स्तम्भों पर बनी एक छत पर टिका था। छत पर कई मीटर मोटी मिट्टी डाली गई थी। इस पर पुष्प-वृक्षों के अतिरिक्त अनेक प्रकार के गहरी जड़ वाले वृक्ष भी लगाये गए थे। इन वृक्षों की सिंचाई फरात नदी के जल द्वारा की जाती थी। जल को स्तंभों में लगे पाइपो की सहायता से ऊपर चढ़ाया जाता था। इसकी ऊंचाई धरातल से लगभग 22.5 मीटर थी। इसी ऊंचाई पर बेबिलोनिया की राजघराने की महिलाएं वृक्षों की शीतल छाया में विहार करती थीं। यह स्थान धरातल से इतना अधिक ऊंचा था कि किसी की दृष्टि वहां तक नहीं पहुंच पाती थी। कहा जाता है कि नेबुसद्रेज्जर द्वितीय ने इस उपवन का निर्माण अपनी मीडियन रानी (उवक्षत्र की पुत्री) के लिए करवाया था । क्योंकि आकर्षक एवं शीतल हवाओं से युक्त पहाड़ियों के बीच रहने वाली मीडियन रानी का कोमल शरीर बेबिलोन की तपती धूप में झुलस जाता था। झूलते हुए उपवन की गणना यूनानियों ने विश्व के सात आश्चर्यों में की है। बेबिलोन के अतिरिक्त अन्य नगरों में भी नेबुसद्रेज्जर द्वितीय द्वारा भवन बनवाए गए। बारसिप्पा में ए जिदा मंदिर का निर्माण इसी ने किया था। नेबुसद्रेज्जर द्वितीय के बाद भवन निर्माण का कार्य नेबु-नैद के शासनकाल में सम्पन्न हुआ तथा बेबिलोन, सिप्पर एवं हरन में कई मन्दिर बनवाए गए।

 

बौद्धिक उपलब्धियां

दजला-फरात घाटी के निवासियों में कैल्डियन सबसे बड़े वैज्ञानिक थे, लेकिन दुर्भाग्य से इनका यह ज्ञान केवल ज्योतिष एवं खगोलशास्त्र तक ही सीमित रह गया। कैल्डियनों के पराभव के आठ सौ वर्ष बाद भी रोम के निवासी इन्हें एक कुशल वैज्ञानिक के रूप में स्मरण करते रहे। इस क्षेत्र में इनकी प्रसिद्धि इतनी अधिक थी कि कभी-कभी कैल्डियन तथा ज्योतिषी को पर्याय मान लिया जाता था। न्यू टेस्टॉमेण्ट में पूर्व के जिन बुद्धिजीवियों का उल्लेख किया गया है, वे सम्भवतः कैल्डियन ज्योतिर्विद ही हैं। कैल्डियनों ने समय-विभाजन की प्राचीन पद्धति में कतिपय संशोधन कर सप्ताह को सात दिन, दिन को बारह घंटे तथा घंटे को एक सौ बीस मिनट में विभाजित किया। इनकी ग्रहणविषयक भविष्यवाणी बहुत सटीक उतरती थी। कैल्डियन वैज्ञानिकों के लिए यह कोई नई बात नहीं थीं। ग्रहणविषयक भविष्यवाणी के प्राचीनतम प्रमाण 2283 ई.पू. के हैं, लेकिन इस प्रकार की गणना आकस्मिक एवं अटकल पर आधारित थी। वास्तव में इस गणना को वैज्ञानिक रूप नेबोपोलस्सर के समय में ही मिला। इस समय से इसका सुव्यवस्थित रिकार्ड रखा जाने लगा। यद्यपि हमें इनकी ग्रहणविषयक गणना का पूरा-पूरा विवरण नहीं मिला है, लेकिन इनमें प्राचीनतम गणना 568 ई.पू. की है। कैल्डियन ग्रहणविषयक गणना इनके अधःपतन के 360 वर्ष बाद तक प्रचलित रही, जिससे हेलेनेस्टिक काल के वैज्ञानिक लाभान्वित हुए थे। कैल्डियन ज्योतिषियों में सर्वाधिक ख्याति नेबु-रिमन्नु एवं किडिन्नु ने अर्जित की । रिमन्नु ने सूर्य एवं चन्द्र की गति का पता लगाया तथा सूर्य एवं चन्द्रग्रहण की जानकारी दी। एक वर्ष की अवधि 365 दिन, 6 घंटे, 15 मिनट तथा 41 सेकण्ड बतायी। इसमें एवं आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित वर्ष की अवधि में केवल 26 मिनट 55 सेकण्ड का अन्तर है। संभवतः वर्ष की निकटतम अवधि इसके पहले कभी नहीं प्राप्त की जा सकी थी। किडिन्नु ने पृथ्वी की धुरी के वार्षिक झुकाव का पता लगाया। ब्रेस्टेड ने दोनों वैज्ञानिकों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। फादरिंगम के अनुसार इन दोनों वैज्ञानिकों की गणना विश्व के महान वैज्ञानिकों में की जानी चाहिए।

ज्योतिष एवं खगोलशास्त्र के अतिरिक्त विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में कैल्डियनों ने कोई प्रगति न की। सम्भवतः ये शून्य से परिचित थे तथा इन्हें थोड़ा बहुत बीजगणित का भी ज्ञान था। इसी प्रकार औषधिशास्त्र में भी इन्होंने कोई प्रगति न की। प्रश्न है कैल्डियन विज्ञान, ज्योतिष एवं खगोलशास्त्र तक ही क्यों सीमित रह गया? इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन नहीं है। वास्तव में नक्षत्र धर्म के कारण कैल्डियन धर्म तथा ज्योतिष एक दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़े थे। आकाश के विभिन्न नक्षत्र एवं ग्रह इनके लिए देवतुल्य थे। इनकी गतिविधियों का अध्ययन कर ये भविष्यवाणियां करते थे। ऐसी स्थिति में इसका विकास सहज एवं स्वाभाविक था।

 

कैल्डियन सभ्यता की महत्ता एवं देन

मेसोपोटामिया के इतिहास में कैल्डियनों का उत्कर्ष काल लगभग तीन चौथाई शती तक ही रहा। किन्तु इस अल्पकाल में भी धर्म, दर्शन, विज्ञान विशेषकर ज्योतिष, खगोलशास्त्र, गणित एवं कला विशेषतः प्राचीरों, दुर्गों एवं शानदार भवनों के क्षेत्र में इनकी उपलब्धियां स्तुत्य हैं। भाग्यवाद, आध्यात्मवाद, निराशावाद इत्यादि का विकास सर्वप्रथम कैल्डिया में किया गया। विज्ञान के क्षेत्र में इनके ज्योतिषविषयक आविष्कार अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। इन सबका प्रभाव परवर्ती विश्व पर निर्विवाद रूप से पड़ा। हिब्रुओ को सर्वप्रथम बन्दी युग में एक सुसम्पन्न एवं समृद्ध राष्ट्र के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आने का सुयोग मिला। यद्यपि यहां वे विद्वेष एवं घृणा की दृष्टि से देखे जाते थे, फिर भी उन्होंने इनसे बहुत कुछ सीखने का प्रयत्न किया। कैल्डियन प्रतीकवाद, निराशावाद, भाग्यवाद एवं अभिचार का प्रभाव हिब्रू धर्म पर दिखाई पड़ता है। इनके ज्योतिष एवं खगोलविज्ञान का प्रभाव यूनान पर पड़ा था।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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