मृदा नमी को प्रभावित करने वाले कारक(Factors Affecting Soil Moisture)
मृदा नमी को प्रभावित करने वाले कारक(Factors Affecting Soil Moisture)
शैलों के अन्दर एक निश्चित समय में जल संचयन की मात्रा (मृदानमी संग्रहण की मात्रा) धरातलीय सतह के गुण, सतह के नीचे सन्धियों की प्रकृति, शैल दरारों, छिद्रों एवं अवशिष्ट रिक्त स्थानों की विशेषताओं पर आधारित होता है। सामान्य रूप में मृदा नमी को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित है।
(i) वाष्पीकरेण (Evaporation):
जिस क्रिया द्वारा जल वाष्प के रूप में परिवर्तित हो जाता है उसे वाणीकरण कहते हैं। सौर्यिक ताप के प्रभाव के कारण धरातलीय सतह से हर समय कुछ न कुछ नमी का अंश वाष्प के रूप में परिवर्तित होकर वायुमण्डल में विलीन हो जाता है। मृदा नमी से वारष्पीकरण की मात्रा एवं तीव्रता वायु की गति, तापक्रम एवं शुष्कता पर निर्भर करती है। भूमध्य रेखा पर यह क्रिया अधिक होती है और जैसे-जैसे धु्वों की ओर बढ़ते हैं वाष्पीकरण की मात्रा एवं तीव्रता क्रमशः कम होती जाती है। इस प्रकार मृदा नमी को प्रभावित करने में वारषीकरण का सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदान है।
(ii) वाष्पोत्सर्जन (Transpiration):
वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया से मृदा नमी का हास होता है। पौर्ध अपनी जड़ों के माध्यम से बहुत अधिक मात्रा में मृदा नमी का अवशोषण करते है परन्तु इस नमी का थोड़ा सा भाग ही पौरधों की आन्तरिक क्रियाओं में काम आता है। नमी का अधिकांश भाग पौधों की पत्तियों तथा अन्य तन्तुओं द्वारा वाण्प के रूप में बाहर निकल जाता है। इसी क्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं। भिन्न-भिन्न पौधों की वाष्पओत्सर्जन गति भिन्न-भिन्न होती है परन्तु यदि मृदा नमी की मात्रा अधिक हो तो वाष्पोत्सर्जन की क्रिया अधिक होती है।
(ii) वर्षा की गति (Speed of Precipitation):
वर्षण की गति का प्रभाव मृदा नमी के ऊपर पड़ता है। यदि वर्षा धीमी गति से होती है तो मिट्टी द्वारा जल धीरे-धोरे किन्तु काफी मात्रा में अवशोषित कर लिया जाता है जिससे मिट्टी में नमी की मात्रा अत्यधिक गहराई तक अधिक मात्रा में संचित हो जाती है। जब वर्षा तीव्र गति से होती है तो जल की अधिकतम मात्रा ढाल के अनुरूप तेजी से आगे प्रवाहित हो जाती है तथा अपेक्षाकृत अन्तःस्पन्दन कम होने से जल का संचयन मिट्टी में कम होता है। परिणामस्वरूप मृदा नमी कम मिलती है।
(iv) धरातलीय ढाल की प्रकृति (Nature of Ground Slope) :
धरातलीय ढाल की प्रकृति द्वारा भी मृदा नमी प्रभावित होती है। धरातलीय ढ़ाल जल के अंतर निवेश क्रिया को प्रभावित करता है। जहाँ पर धरातलीय ढाल तीव्र होता है जैसे उत्तल ढाल (Convex Slope), मुक्त पृष्ठ ढाल, या तीव्र सरल रेखीय ढाल वहाँ वर्षा का जल तीव्र गति से प्रवाहित होता हुआ नदियों में समाहित हो जाता है अतः सम्बन्धित क्षेत्र में ढाल परिच्छेदिका के सहारे मृदा नमी संचयन कम हो पाता है। इसके विपरीत समतल सतह तथा अवतल ढाल वाली घाटी प्रदेशों में ढाल कोणों में गिरावट के कारण जल धीरे-धोरे प्रवाहित होता है। अतः मृदा के साथ अधिक समय तक जल के सम्पर्क के कारण मृदा नमी की मात्रा अधिक मिलती है।
(v) मिट्टी में जीवाश्म की मात्रा (Quantity of Fossils in Soil ) :
मिट्टी का निर्माण जीवावशेषों एवं वनस्पतियों के अवशिष्टों के माध्यम से होता है। जिस मिट्टी में जीवाश्मों की मात्रा अधिक होती है उसकी नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है।
(vi) वायु की शुष्कता एवं गति (Dryness and Speed of Air) :
वायु की शुष्कता एवं गति से वाष्पीकरण प्रभावित होता है। जितने ही उच्च ताप पर वायु शुष्क होती है उसकी गति उतनी ही तीव्र होती है तथा मृदा नमी का वाष्पन उतना ही अधिक एवं तीव्र होता है। स्थिर वायु में नमी का स्थानानंतरण न हो के कारण वायु शीघ्र संतृप्त हो जाती है तथा मृदा नमी का वाष्पन कम होता है। उच्च ताप वाली अस्थिर वायु में वाष्प का स्थानान्तरण तेजी से होता रहता है।
(vi) शैलों की संरचना एवं संगठन (Structure and Composition of Rocks) :
शैलों के कणों की संरचना एवं संगठन मृदा नमी को प्रभावित करती है। यदि मृदा में कणों की संख्या अधिक होती है तो उसमें नमी धरण की शक्ति अधिक बढ़ जाती है। जिस मिट्टी में कण बड़े एवं असमान होते हैं उसमें नमी का संचयन कम होता है। रन्ध्युक्त मृदा में नमी धारण क्षमता अपेक्षाकृत अधिक होती है।
(vii) तापमान (Temperature) :
मृदा तथा समीपवर्ती वायुमण्डल में जब तापमान अधिक होता है तो नमी धारण करने की क्षमता कम होती है। किन्तु हयूमस युक्त मृदा पर इस परिस्थिति का प्रभाव नहीं होता। ह्यूमस युक्त मृदा के कण सूक्ष्म आकार के होते हैं। जिससे जल धारण की शक्ति अधिक होती है। नाइट्रोजन क्लोराइड, कैल्सियम क्लोराइड एवं चूना पत्थर में नमी संचयन की क्षमता अधिक होती है जबकि पोटेशियम एवं सोडियम का्बोनेट में नमी धारण करने की क्षमता कम होती है।
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