कवि-लेखक / poet-Writer

हरिवंशराय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan)

हरिवंशराय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan)

जीवन-परिचय

श्री हरिवंशराय बच्चन का जन्म प्रयाग में 1907 ई० में हुआा। आपकी प्रारंम्भिक शिक्षा उर्दू भाषा के माध्यम से हुई थी। आपने सन् 1925 ई० में कायस्थ पाठशाला, इलाहाबाद से हाईस्कूल, 1927 ई० में गवर्नमेण्ट इन्टर कालेज से इण्टर तथा सन् 1929 ई० में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण आपने विश्वविद्यालय छोड़ दिया। बाद में 1938 ई० में उसी विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1954 ई० में आपने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पी -एच० डी० की उपाधि प्राप्त की। आरम्भ में आपने प्रयाग विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में कार्य किया। कुछ समय तक आपने आकाशवाणी में काम किया।

तत्पशचात् आपकी नियुक्ति भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज के पद पर हुई और वहीं से अवकाश ग्रहण किया। आप 1965 ई० मे भा के सदस्य मनीनीत हुए।

साहित्य और कविता के प्रति आपकी रुचि बचपन से ही थी। 1923 ई० में आपकी रचना ‘मधुशाला’ के प्रकाशन ने आपकी कीर्ति के शिखर पर पहुँचा दिया। आपकी साहित्यिक सेवाओं के लिए 1976 ई० में भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘पदाम भूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। आपका शरीरान्त 2003 ई० में ही गया।

रचनाएँ

बच्चन जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं -मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, प्रणय-पत्रिका, एकति संगीत, मिलन यामिनी, सतरीगिणी, दी चट्टानें आदि।’दी चट्टानें ‘ काव्य-ग्रन्थ के लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया है।

काव्यगत विशेषताएँ

बचन जी उत्तर छायावादी काल के आर्थावादी कवि हैं। आपकी कविताओं में भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति हुई है । आपकी कविता में प्रेम के संयोग वियोग जन्य भावपूर्ण चित्र अंकित हैं। प्रेम के अतिरिक्त जीवन के अन्य सन्दर्भी में निराशा की भाषा देखने की मिलती है । विद्रीह का स्वर भी कहीं-कहीं आपकी कविताओं में मिलता है । आपकी पृर्ववर्ती रचनाओँ में वैयक्तिकता है तो परवर्ती रचनाओं में जन – जीवन का व्यापक चित्रण है । बैचारिक क्रान्ति, मानवीय संवेदना और व्यंग्य-दंश से पूर्ण आपके काव्य ने हिन्दी कविता को नयी दिशा प्रदान की है।

बच्चन जी की भाषा साहित्यिक होते हुए भी बौलचाल की भाषा के अधिक निकट है। आपकी भाषा सरल व सरस है। आपने लोकगीतीं और मुक्तक छन्दो की रचना की है। अपनी गेयता, सरलता, सरसता और खुलेपत के कारण आपके गीत बहुत ही परसल्द किये जाते हैं।

साहित्य में स्थान

निःसन्देह लीकगीतों की धुन में गीतों की रचना करके बच्चन जी ने लोकप्रियता प्राप्त की है। हिन्दी हित्य में हालावाद के स्थापक के रूप में आपका मान्य स्थान है।

स्मरणीय तथ्य

जन्म- 1907 ई०, प्रयाग।

शिक्षा- एम० ए०. पी.-एच० डी०/

पिता का नाम- पताप नारायण।

रचनाएँ- मधुशाला, मधुबाला मधुकलश, निशा निमन्त्रण, एकान्त संगीत, सतरीगिणी, हलाहल, बंगाल का काल, मिलन यामिनी प्रणय- पत्रिका, बुद्ध और नाचषर (काव्य), भ्य भूलू क्या याद करूं, नीड़ का निर्माण फिर (आत्मकथा), दो चट्टानें ।

काव्यगत विशेषताएँ

वर्ण्य-विषय- प्रेम के संयोग-वियोग जन्य भावों का चित्रण, विषाद और निराशा का चित्रण, विद्रीह का स्वर, युगे जीवन का व्यापक चित्रण।

भाषा- सहज व सरल खड़ीबोली।

शैली- गीतात्मक।

छन्द- मुक्तक।

महत्वपूर्ण लिंक 

Disclaimersarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है | हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है| यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!