महाकवि भूषण

महाकवि भूषण (Kavi Bhushan)

महाकवि भूषण  (Kavi Bhushan)

जीवन-परिचय

वीर रस के सर्वश्रेष्ठ महाकवि भूषण का जन्म संवत् 1670 ( सन् 1618 ई०) में कानपुर के तिकवापुर ऋ्राम में हुआ था इनके पिता का नाम पं० रत्नाकर त्रिपाठी था। हिन्दी के रससिद्ध कवि चिन्तामणि त्रिपाठी और मतिराम इनके भाई थे। इनके बास्तविक नाम के विषय में अभी तक भी ठीक-ठीक पता नहीं चल पाया है। चित्रकूट के राजा रुद्र ने इनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर इन्हें ‘भूषण’ की उपाधि से सुशोभित किया था। तब से ये ‘भूषणं नाम से प्रसिद्ध हुए। शनै: शनै: लोगों ने इनके वास्तविक नाम को छोड़ दिया और इन्हें ‘भूषण’ नाम से ही सम्बोधित किया जाने लगा। बाद में ये शिवाजी के दरबार में चले गए और जीवन के अन्तिम दिनों तक वहीं रहे। इनके दूसरे आश्रयदाता महाराज छत्रसाल थे। इन्होंने अपने काव्य में इन्हीं दोनों की वीरता और पराक्रम का गुणगान किया है। कहते हैं कि भूषण से प्रभावित होकर ही महाराजा छत्रसाल ने एक बार उनकी पालकी में कन्या लगाया था। शिवाजी ने उन्हें बहुत-सा धन और मान देकर समय-समय पर कृतार्थ किया था। छत्रसाल और शिवाजी के इन्हीं गुणों से प्रभावित होकर भूषण ने कहा था-

शिवा को सराहीं के सराहौं छत्रसाल को।

निरन्तर वीर रस पूर्ण रचनाएँ करते हुए महाकवि भूषण का देहावसान संवत् 1772 (सन् 1715 ई० ) के लगभग हुआ।

 

साहित्यिक व्यक्तित्व

रीतिकालीन युग की शृंगारिक प्रवृत्ति का तिरस्कार कर वीर रस के काव्य का सृजन करनेवाले रीतिकालीन कवि भूषण का नाम वीर रस के कवियों में सर्वप्रथम लिया जाता है। यद्यपि कविवर भूषण अपने युग (रोतिकालीन युग) की लक्षण-ग्रन्थ परम्परा एवं अन्य प्रवृत्तियों से सर्वथा मुक्त नहीं थे और इनके काव्य में भी रस, छन्द, अलंकार आदि का प्रयोग शास्त्रीय रूप में हुआ है, तथापि इन्होंने तत्कालीन विलासितापूर्ण श्रिंगरिता को त्यागकर राष्ट्रप्रेम और वीरोचित भावों से युक्त काव्य-रचना की। जातीय एवं राष्ट्रीय भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति एवं अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करनेवाले लोकनायकों-शिवाजी एवं छत्रसाल के वीरोचित गुणों का प्रकाशन इनके काव्य का मुख्य विषय रहा है। अपने काव्यों में वीर रस एवं राष्ट्रीय भाव की विशिष्ट तथा सशक्त अभिव्यक्ति देने के कारण महाकवि भूषण को हिन्दी-साहित्य का ‘सर्वप्रथम राष्ट्रकवि’ माना जाता है।

 

रचनाएँ

महाकवि भूषण द्वारा रचित तीन ग्रन्थ हैं-(1) शिवराज-भूषण, (2) शिवाबावनो, (3) छत्रसाल-दशक। ये तीनों वीर रस के ग्रन्थ हैं इनमें शिवाजी एवं छत्रसाल के शौर्य तथा पराक्रम का वर्णन है।

 

काव्यगत विशेषताएँ

महाकवि भूषण का सम्पूर्ण काव्य वीर रस से ओत-प्रोत है उनके काव्य की निम्नांकित विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं-

(अ) भावपक्षीय विशेषताएँ

(1) वीर रस- वीर रस के कवियों में भूषण का नाम अग्रगण्य है। उन्होंने महाराज छत्रसाल और शिवाजी की वीरता का अनेक प्रकार से वर्णन किया है। शिवाजी की चतुरंगिणी सेना (पैदल, घुड़सवार, हाथी-सवार तथा रथ-सवार) के प्रस्थान और रणकौशल के वर्णन में भूषण को बहुत सफलता मिली है-

साजि चतुरंग सैन अंग मैं उमंग धारि,

सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।

शत्रु-पक्ष की व्याकुलता, दीनता और खीझ का भी महाकवि भूषण ने अत्यन्त हृदयस्पर्शी चित्रण किया है। औरंगजेब के अत्याचार भी उनकी दृष्टि से छिपे नहीं रहे। शिवाजी के साथ-साथ उन्होंने छत्रसाल की तलवार का भी सशक्त रूप में वर्णन किया है-

भुज भुजगेस की वै संगिनी भुजंगिनी-सी,

खेदि खेदि खाती दीह दारुन दलन के।

इस प्रकार की साहसपूर्ण यश-गाथाओं के आधार पर भूषण ने भारतीय संस्कृति की रक्षा की प्रेरणा दी है और हिन्दू धर्म को प्रतिस्थापित किया है। वास्तव में वीर रस की दृष्टि से महाकवि भूषण का काव्य सर्वश्रेष्ठ है।

(2) राष्ट्रीय भावना- महाकवि भूषण का काव्य राष्ट्रीय भावना पर आधारित है। कुछ आलोचकों ने उन पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाया है। ऐसे लोगों का मत है कि भूषण ने साम्प्रदायिकता के वशीभूत होकर हिन्दुत्व की रक्षा और हिन्दू-संस्कृति के चित्रण में ही अपने काव्य की इतिश्री की है। लेकिन ये आलोचक यह भूल जाते हैं। कि उस समय क्रूर मुगल-सम्राट् औरंगजेब हिन्दुओं पर घोर अत्याचार कर रहा था। अनेक हिन्दुओं को मुसलमान बनाया जा रहा था और उनके मन्दिर नष्ट किए जा रहे थे। ऐसे समय में यदि भूषण का उद्देश्य शिवाजी की वीरता का वर्णन कर भारतीय धर्म और संस्कृति की रक्षा करना था तो वह निःसन्देह उचित ही था । भूषण ने अत्याचारियों के नाश हेतु शिवाजी को प्रत्येक दृष्टि से उत्साहित एवं प्रेरित किया है। इसीलिए ये उनकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं-

वेद राखे विदित पुरान राखे सारयुत,

राम नाम राख्यो अति रसना सुधर मैं।

(3) सजीव युद्ध-वर्णन- महाकवि भूषण ने शिवाजी की सेना के प्रस्थान, चतुरगिणी सेना के कौशल और युद्धों के सजीव चित्र अंकित किए हैं। इसका कारण यह है कि भूषण ने युद्धों को बहुत निकट से देखा था। यद्यपि इन वर्णनों में अतिशयोक्ति का पुट है, तथापि कवि का कौशल दर्शनीय है। सेना के प्रस्थान का यह वर्णन देखिए-

ऐलफैल खैलभैल खलक में गैलगैल,

गजन की ठैलपैल सैल उलसत हैं।

तारा सो तरनि धूरि धारा में लगत जिमि,

थारा पर पारा पारावार यों हलत हैं।।

इसी प्रकार युद्ध का वर्णन करते हुए भूषण लिखते हैं-

बाने फहराने घहराने घण्टा गजन के,

नाहीं ठहराने रावराने देसदेस के।

(4) युग का प्रतिनिधित्व- महाकवि भूषण ने अपने युग के संघर्ष का प्रभावशाली चित्रण किया है। औरंगजेब के अत्याचारों का वर्णन करते हुए इन्होने भारतीय राजपूतों के आपसी वैमनस्य की ओर भी संकेत किया है-

आपस की फूट ही तै सारे हिन्दुआन दूटे।

भूषण ने विदेशी शक्तियों के सिर उठाने और शिवाजी द्वारा उनको आतंकित करने का भी वर्णन किया है-

तेरी धाक ही तें नित हवसी फिरंगी और,

विलाइती बिलन्दे करैं वारिधि विहरनो।

इस प्रकार भूषण ने रीतिकाल में भी ओजपूर्ण काव्य का प्रभावशाली प्रतिनिधित्व किया है ।

(5) अन्य रस- महाकवि भूषण ने वीर रस के सहयोगी रसों के रूप में भयानक और रौद्र रस की सुन्दर व्यंजना की है। इसके अतिरिक्त बीभत्स, करुण एवं श्रृगार रसों के वर्णन भी यत्र- तत्र मिलते हैं। शिवाजी के क्रोध का वर्णन करते हुए कवि ने रौद्र रस का सुन्दर रूप प्रस्तुत किया है-

सबन के ऊपर ही ठाढ़ो रहिबों के जोग,

ताहि खरो कियो छह हजारन के नियरे।

जानि गैर मिसिल गुसीले गुस्सा धारि उर,

कीन्हों न सलाम न वचन बोले सियरे॥

(ब) कलापक्षीय विशेषताएँ

(1) भाषा- महाकवि भूषण ने ब्रजभाषा में काव्य-रचना की है, जिसमें अरबी, फारसी, प्राकृत, बुन्देलखण्डी और खड़ीबोली आदि के शब्दों के भी प्रयोग किए गए हैं। इनकी भाषा में ओज गुण सर्वत्र विद्यमान है तथा कहीं-कहीं  शब्दों को इच्छानुसार तोड़ा-मरोड़ा भी गया है। इनके काव्य में मुहावरों और लोकोक्तियों के सुन्दर प्रयोग भी देखने को मिलते हैं।

(2) शैली- महाकवि भूषण के काव्य में ओजपूर्ण वर्र्णन- शैली मिलती है, जिसमें ध्वन्यात्मकता एवं चित्रात्मकता का गुण विदपान है। वचा

रैयाराव चंपति के छत्रसाल महाराज

भृषन सकै करि बखान को बलन के।

पच्छी पर छीने ऐसे परे पर छीने बीर,

तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के ।।

(3) छन्द- भूषण ने कवित्त, सवैया, दोहा और छणय आदि छन्दौं की अपने काव्य का आधार बनाया है ।

(4) अलंकार- भूषण ने अनेक अलंकारों का सुन्दर प्रयोग किया है। इस दृष्टि से अनुप्रास, यमक, रपक, उपमा, उत्प्रेक्षा एवं अतिशयोवित आदि अलंकार प्रमुख है। यमक अलंकार का एक उदाहरण द्रष्टव्य है-

ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहनवारी,

ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहाती हैं।

 

हिन्दी-साहित्य में स्थान

रीतिकालीन कवियों में भूषण विशिष्ट स्थान के अधिकारी हैं भूषण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने घोर विलासिता के युग में शिवाजी एवं छत्रसाल की वीरता, शौर्य एवं पराक्रम का वर्णन करके सुप्त राष्ट्रीयता की भावना जाम्रत किया और जन-जन में वीरता के भावीं का संचार किया।

वस्तुतः भूषण का काव्य वह अपर काव्य है, जो युग-युग तक लोगों में बल, पौरुष एवं साहस भरता रहेगा। वे हिन्दी-साहित्य के प्रथम राष्ट्रीय कवि हैं और उनका काव्य हिन्दी में रचित सर्वप्रथम राष्ट्रीय काव्य है।

 

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