कवि-लेखक / poet-Writer

काका कालेलकर (Kaka Kalelkar)

काका कालेलकर (Kaka Kalelkar)

जीवन-परिचय                                      

काका कोलेलकर का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में 1 दिसम्बर, 1835 ई० को हुआ था। काका कालेलकर हिन्दी के उन उन्नायक साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने अहिन्दी भाषा क्षेत्र का होकर भी हिन्दी सीखकर उसमें लिखना प्रारम्भ किया। उन्होंने राष्ट्रभाषा के प्रचार-कार्य को राष्ट्रीय कार्यक्रम के अन्तर्गत माना है। काका कालेलकर ने सबसे पहले हिन्दी लिखी और फिर दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार का कार्य प्रारम्भ किया। अपनी सूझबूझ, विलक्षणता और व्यापक अध्ययन के कारण उनकी गणना देश के प्रमुख अध्यापकों एवं व्यवस्थापकों में होती है। काका साहब उच्चकोटि के विचारक एवं विद्वान् थे। भाषा प्रचार के साथ-साथ इन्होंने हिन्दी और गुजराती में मौलिक रचनाएँ भी की हैं। 1981 ई० में आफ्की मृत्यु हो गयी।

 

कृतियाँ

काका साहब की कृतियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. निबन्ध-संग्रह- जीवन-साहित्य, जीवन का काव्य-इन विचारात्मक निबन्धों में इनके संत व्यक्तित्व और प्राचीन भारतीय संस्कृति की सुन्दर झलक मिलता है।
  2. 2. आत्म-चरित्र- ‘ धर्मोदय’ तथा जीवन लीला’-इनमें काका साहब के यथार्थ व्यक्तित्व की संजीव

झाँकी है।

  1. 3. यात्रा वृत्त ‘हिमालय प्रवास’, ‘लोकमाता’, ‘यात्रा’, ‘उस पार के पड़ोसी’ आदि प्रसिद्ध यात्रावृत्त हैं।
  2. सस्परण- ‘संस्मरण’ तथा ‘बाप की झाँकी’-इन रचनाओं में महात्मा गाँधी के जीविन का चित्रण है।
  3. सर्वोदय- साहित्य-आपकी ‘सर्वोदय’ रचना में सर्वोदय से सम्बन्धित विचार हैं।

 

साहित्यिक परिचय

काका कालेलकर साहब एक सिद्धहस्त मझे हुए लेखक थे। किसी भी सुन्दर दृश्य का वर्णन अथवा पेचीदी समस्या का सगम विश्लेषण उनके लिए आनन्द का विषय है। उनके यात्रा-वर्णन में पाठकों को देश-विदेश के भौगोलिक विवरणों के साथ-साथ वहाँ की विभिन्न समस्याओं तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषताओं की जानकारी भी हो जाती है। काका साहब देश की विभिन्न भाषाओं के अच्छे जानकार हैं । उन्होंने प्राय: अपने ग्रन्थों का अनुवाद विभिन्न भारतीय भाषाओं में स्वयं प्रस्तुत किया है। इनके विचारों में संस्कृति और परम्पराओं में एक नवीन क्रान्तिकारी दृष्टिकोणों का समावेश रहता है।

 

भाषा-शैली

काका कालेलकर साहब की भाषा अत्यन्त ही सरल और ओजस्वी है। उसमें एक आकर्षक धारा है जिसमें सूक्ष्म दृष्टि एवं विवेचनात्मक तर्कपूर्ण विचार की अभिव्यक्ति होती है। उनकी भाषा में एक नयी चित्रमयता के साथ-साथ विचारों की मौलिकता के स्पष्ट दर्शन होते हैं। भाषा के साथ-साथ उनकी शैली अत्यन्त ही ओजस्वी है । इन्होंने अपने निबन्धों में प्राय: व्याख्यात्मक शैली का प्रयोग किया है। कुछ रचनाओं में प्रबुद्ध विचारक के उपदेशात्मक शैली के दर्शन होते हैं।

स्परणीय तथ्य

जन्म- 1885 ई०।

मृत्यु- 1981 ई०।

जन्म-स्थान- महाराष्ट्र में सतारा जिला।

अन्य बातें- हिन्दी, गुजराती, बंगला, अंग्रेजी, मराठी भाषाओं पर पूरा अधिकार, राष्ट्रभाषा का प्रचार।

भाषा- सरल, ओजस्वी, प्रवाहपूर्ण।

शैली- सजीव, प्रभावपूर्ण, कल्पना की उड़ान ।

साहित्य- संस्मरण, यात्रा वर्णन, सर्वोदय, हिमालय प्रवास, लोकमाता, उस पार के पड़ोसी, जीवन लीला, बापू की झाँकियाँ, जीवन का काव्य आदि।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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