कठोर एवं लचीला संविधान
कठोर एवं लचीला संविधान
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कठोर एवं लचीलापन का संविधान में समन्वय – संविधान में संशोधन प्रणाली के आधार पर संविधान दो प्रकार का होता है कठोर या दुष परिवर्तनशील संविधान लचीला या सुपरिवर्तनशील संविधान-
कठोर संविधान वह होता है जिसमें संविधान संशोधन की प्रक्रिया या प्रणाली जटिल होती है। ये वे संविधान होते हैं। जिनमें संवैधानिक व साधारण कानून में मौलिक भेद समझा जाता है तथा इनमें संवैधानिक कानूनों में संशोधन परिवर्तन के लिए साधारण कानूनों के निर्माण से भिन्न प्रक्रिया अपनाई जाती है, जो साधारण कानूनों के निर्माण की प्रणाली से कठिन होती है। उदाहरण अमेरिकी संविधान।
लचीला संविधान वह होता है जिसमें संविधान की प्रक्रिया सरल होती है। यदि संवैधानिक कानूनों और सामान्य कानूनों के बीच कोई अंतर न हो और संविधानिक कानून में सामान्य कानूनों की प्रक्रिया से ही संशोधन एवं परिवर्तन क्या का सके, तो संविधान को लचीला या सुपरिवर्तनशील कहा जाता है। उदाहरण इंग्लैंड का संविधान।
भारत का संविधान ना तो कठोर है और न ही लचीला। भारतीय संविधान में संविधान संशोधन के लिए तीन प्रक्रिया अपनाई जाती है।
(i) संसद के प्रत्येक सदन में साधारण बहुमत द्वारा – साधारण विधेयक (गैर वित्तीय) को पारित करने की प्रक्रिया अर्थात दोनों सदनों द्वारा उपस्थित तथा मतदाता सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा पारित हो ने पश्चात् राष्ट्रपति की अनुमति से पारित हो जाता है। इस प्रक्रिया द्वारा निम्नलिखित प्रावधानों में संशोधन किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 2, 3 तथा 4 – नए राज्यों का निर्माण, राज्यों की सीमा परिवर्तन, राज्यों के नाम में परिवर्तन इत्यादि।
- अनुच्छेद 169 – किसी राज्य की व्यवस्थापिका में द्वितीय सदन विधानपरिषद की रचना तथा उसका समाप्त किया जाना।
- संविधान की द्वितीय अनुसूची।
- अनुच्छेद 100 (3) – संसद मे गणपूर्ति।
- अनुच्छेद 106 – संसद सदस्यों के वेतन भत्ते आदि।
- अनुच्छेद 105 – संसद सदस्यों के विशेषाधिकार तथा उन्मुक्तिया।
- अनुच्छेद 118 – संसद में प्रक्रिया संबंधी नियम।
- अनुच्छेद 120 (2) – अंग्रेजी को संसद के कार्यों की भाषा संबंधी नियम।
- अनुच्छेद 124 (1) – सर्वोच्च न्यायालय का संगठन तथा न्यायाधीशों की संख्या से संबंधित।
- अनुच्छेद 135 – सर्वोच्च न्यायालय के कार्य क्षेत्र विस्तार से संबंधित।
- अनुच्छेद 348 – भारत में आधिकारिक भाषा के प्रयोग से संबधित।
- अनुच्छेद 5 से 11 – भारत की नागरिकता संबंधी।
- अनुच्छेद 327 – देश में चुनावों से संबंधित मामले।
- 5वी तथा 6ठी अनुसूची – अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनातियों के प्रशासन से संबंधित।
- अनुच्छेद 81 – चुनावी क्षेत्रों को असीमित तथा सीमित करना।
- अनुच्छेद 240 – केंद्रशासित क्षेत्र।
(ii) ससद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत द्वारा – संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रत्येक सदन में यह सदन कोई कुल संख्या के बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित होना चाहिए तथा इसके पश्चात् राष्ट्रपति का अनुमोदन मिलने के बाद यह संशोधन हो जाता है। इस प्रक्रिया द्वारा मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रावधानों का संशोधन किया जाता है।
- संविधान का भाग 3 – मौलिक अधिकारों से संबंधित मामले।
- संविधान का भाग 4 – राज्यों के नीति निर्देशक तत्व।
(iii) सघ तथा राज्यों की सहमति से – इस प्रक्रिया के अंतर्गत संविधान संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रत्येक सदन द्वारा कुल संख्या के बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए। इसके पश्चात् यह पारित संविधान संशोधन विधेयक राज्यों के विधानमंडलों के पास भेजा जाता है। भारत के काम से कम आधे राज्यों के विधानमंडलों द्वारा साधारण बहुमत से पारित किया गया विधेयक पारित माना जाता है। राज्यों से अनुमोदित विधेयक राष्ट्रपति कोई सहमति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति की अनुमति मिल जाने के पश्चात यह संशोधन मान्य होता है। इस प्रक्रिया के द्वारा निम्नलिखित प्रावधानों में संशोधन किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 54 तथा 55 – राष्ट्रपति का निर्वाचन तथा निर्वाचन प्रक्रिया से संबंधित।
- अनुच्छेद 75 तथा 162 – क्रमशः संघ तथा राज्य की कार्यपालिका शक्ति से संबंधित।
- भाग 5 का अध्याय 4 – सर्वोच्च न्यायालय से संबंधित।
- भाग 5 का अध्याय 5 – राज्यों के उच्च न्यायालय से संबंधित।
- संविधान की सातवीं अनुसूची – राज्य तथा संघ में व्यवस्थापिका शक्ति का वितरण।
- चौथी अनुसूची – संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व से संबंधित।
- अनुच्छेद 368 – संविधान में संशोधन की प्रक्रिया से संबंधित।
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