डॉ० सम्पूर्णानन्द

डॉ० सम्पूर्णानन्द

डॉ० सम्पूर्णानन्द

जीवन-परिचय

कुशल राजनीतिज्ञ, समर्थ साहित्यकार प्रकाण्ड विद्वान् और जागरूक शिक्षाविद् डॉ० सम्पूर्णानन्द का जन्म सन् 1890 ई० में काशी में हुआ था इनके पिता का नाम विजयानन्द था। इन्होंने बनारस से बी० एस-सी० तथा इलाहाबाद से एल० टी० की परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं। सम्पूर्णानन्दजी ने स्वाध्याय के आधार पर अंग्रेजी और संस्कृत भाषाओं के साथ-साथ दर्शन, धर्म, संस्कृत, ज्योतिष आदि का विस्तृत ज्ञान प्राप्त किया। वे काशी, वृन्दावन और इन्दौर के विद्यालयों में अध्यापक पद पर कार्यरत रहे। भारत के स्वाधीनता संग्राम में कूदने के कारण उनको जेल भी जाना पड़ा। वे उत्तर प्रदेश के शीर्षस्थ नेताओं की पंक्ति में प्रतिष्ठित हुए और राज्य के शिक्षामन्त्री, गृहमन्त्री, मुख्यमन्त्री तथा राजस्थान के राज्यपाल भी रहे। राजनीति में सक्रिय रहते हुए उन्होंने प्रचुर मात्रा में उच्चकोटि के साहित्य का सृजन किया कुछ समय तक उन्होंने अंग्रेजी की ‘दुडे’ तथा हिन्दी की ‘मर्यादा पत्रिका का सम्पादन भी किया। 10 जनवरी, सन् 1969 ई० को इस साहित्य- तपस्वी का निधन हो गया।

 

साहित्यिक सेवाएँ

डॉ० सम्पूर्णानन्द भारतीय दर्शन और संस्कृति के प्रकाण्ड विद्वान् थे। इनका संस्कृत, अंग्रेजी और हिन्दी तीनों भाषाओं पर अच्छा अधिकार था। ये उर्दू एवं फारसी के भी अच्छे ज्ञाता थे। विज्ञान, दर्शन, योग, इतिहास, राजनीति आदि विषयों में इनकी गहरी रुचि थी। इन्होंने इन विषयों पर हिन्दी-साहित्य को उत्कृष्ट निबन्धों का उपहार दिया है। ये एक सुप्रसिद्ध राष्ट्रभक्त एवं स्वतन्त्रता सेनानी भी थे। सन् 1936 ई० में ये प्रथम बार विधानसभा के सदस्य चुने गए तथा सन् 1937 ई० में उत्तर प्रदेश के शिक्षामन्त्री बने। सन् 1940 ई० में इन्हें ‘अखिल भारतीय हिन्दी-साहित्य सम्मेलन’ का सभापति निर्वाचित किया गया। ‘हिन्दी-साहित्य सम्मेलन’ ने इनकी कृति ‘समाजवाद’ पर इनको ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्रदान किया तथा ‘साहित्यवाचस्पति’ की उपाधि से सम्मानित भी किया। ये ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ के आद्यक्ष एवाह संरक्षक भी थे। सन 1962 मे इन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया। सन् 1967 ई० में इस पद से मुक्त होने के पश्चात् ये काशी लौट आए और मृत्युपर्यन्त काशी विद्यापीठ’ के कुलपति रहे।

 

कृतियाँ

डॉ० सम्पूर्णानन्द ने विविध विषयों पर उच्चकोटि के ग्रन्थों और निबन्धों की रचना की है। उनकी प्रमुख कृतियाँ अग्रलिखित हैं-

(1 ) निबन्ध्र-संग्रह– (1) चिद्विलास, (2) पृथ्वी से सप्तर्षि मण्डल, (3) ज्योतिर्विनोद, (4) अन्तरिक्ष यात्रा।

(2) फुटकर निबन्ध- जीवन और दर्शन।

( 3) जीवनी- (1) देशबन्धु चितरंजनदास, (2 ) महात्मा गांधी।

(4) राजनीति और इतिहास- (1) चीन की राज्यक्रान्ति, (2) मिस्र की राज्यक्रान्ति, ( 3) समाजवाद, (4) आयों का आदि देश, (5) सम्राट् हर्षवर्धन, (6) भारत के देशी राज्य आदि।

(5) धर्म- (1) गणेश, (२) नासदीय सूक्त की टीका, (३) ब्राह्मण सावधान।

(6) सम्पादन– (1) ‘मर्यादा’ मासिक, (2) ‘टुडे’ अंग्रेजी दैनिक।

इनके अतिरिक्त ‘अन्तर्राष्ट्रीय विधान’, ‘पुरुषसूक्त’, ‘व्रात्यकाण्ड’, ‘भारतीय सृष्टिक्रम विचार’, ‘हिन्दू देव’ परिवार का विकास वेदार्थ प्रवेशिका’, ‘स्फुट विचार’, ‘अधूरी क्रान्ति’, ‘भाषा की शक्ति तथा अन्य निबन्ध’ आदि इनकी अन्य महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं।

इस प्रकार डॉ० सम्पूर्णानन्दजी ने विविध विषयों पर लगभग 25 ग्रन्थों तथा अनेक फुटकर लेखों की रचना की थी।

 

भाषा-शैली

डॉ० सम्पूर्णानन्द गम्भीर विषयों पर लेखनी चलानेवाले विद्वान् लेखक रहे हैं; अत: उनकी भाषा-शैली प्रौढ़ और गम्भीर है। सामान्यत: उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ होते हुए भी स्पष्ट और सुबोध है, यद्यपि अत्यन्त गम्भीर विषयों का विवेचन करते समय उनकी भाषा कहीं-कहीं क्लिष्ट भी हो गई है। शैली के रूप में उन्होंने विचारात्मक, गवेषणात्मक तथा व्याख्यात्मक शैलियों का प्रयोग प्रमुखता से किया है।

 

हिन्दी-साहित्य में स्थान

डॉ० सम्पूर्णानन्द हिन्दी के प्रकाण्ड पण्डित, कुशल राजनीतिज्ञ, मर्मज्ञ साहित्यकार, भारतीय संस्कृति एवं दर्शन के ज्ञाता, गम्भीर विचारक तथा जागरूक़ शिक्षाविद् आदि के रूप में जाने जाते हैं। इनके निबन्धों का हिन्दी-साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। अपने विषय की सर्वप्रथम कृति होने के कारण, इनकी कई कृतियाँ अपना ऐतिहासिक महत्त्व रखती है। एक मनीषी साहित्यकार के रूप में इनकी सेवाओं के लिए सम्पूर्ण साहित्यिक जगत् सदैव ऋणी रहेगा।

 

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