सम्प्रेषण (Communication)- सम्प्रेषण की प्रकृति एवं विशेषताएँ, सम्प्रेषण की प्रक्रिया, सम्प्रेषण के प्रकार
सम्प्रेषण (Communication)- सम्प्रेषण की प्रकृति एवं विशेषताएँ, सम्प्रेषण की प्रक्रिया, सम्प्रेषण के प्रकार
प्रस्तावना (Introduction)
सम्प्रेषण शिक्षा की ‘रीढ़ की हड्डी’ हैं। बिना सम्प्रेषण के शिक्षा और शिक्षण दोनों की ही कल्पना नहीं की जा सकती। सम्प्रेषण शब्द अंग्रेजी के कम्युनीकेशन (Communication) का हिन्दी पर्यायवाची शब्द है। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘कम्यूनीस’ से मानी जाती है। ‘कम्यूनीस’ शब्द का अभिप्राय हैं ‘कॉमन’ या ‘सामान्य’। अत: कहा जा सकता है कि सम्प्रेषण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति परस्पर सामान्य अवबोध के माध्यम से ‘आदान-प्रदान’ करने का प्रयास करते हैं।
सम्प्रेषण का अर्थ है परस्पर सचनाओं तथा विचारों का आदान-प्रदान करना। शिक्षा और शिक्षण, बिना सचनाओं तथा विचारों के आदान-प्रदान के सम्भव ही नहीं है। शिक्षक होने के नाते आप अपने प्रधानाचार्य से अथवा छात्रों से कुछ कहते हैं या छात्र आपको कुछ बताते हैं, प्रत्युत्तर देते हैं या प्रधानाचार्य बुलाकर आपको आदेश देते हैं, प्रशंसा या आलोचना करते हैं। इसका तात्पर्य हैं कि Communication की प्रक्रिया चल रही हैं। जब बच्चे एक-दूसरे का हाथ पकड़कर परस्पर कानों में फुसफुसाते हैं ( बहुत धीरे धीरेबोलते हैं) तब भी सम्प्रेषण की प्रक्रिया चल रही होती है। एक अच्छा भाषणकर्ता सदैव अपने हाव्र-भाव्र, मुख मुद्रा तथा मुख-भंगिमाओं का प्रयोग अपने श्रोताओं को प्रभावित करने के लिए करता है।
नोट्स- सम्प्रेषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यांक्ति अपने ज्ञान, हाव-भाव, मुख मुद्रा तथा विचारों आदि का परस्पर आदान-प्रदान करते हैं तथा इस प्रकार से प्राप्त विचारों अथवा संदेशों को समान तथा सही अर्थों में समझने और प्रेषण करने में उपयोग करते हैं ।
सम्प्रेषण, प्रेषण करने की, विचार विनिमय करने की, अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने की और दूसरों की बातें सुनने की. विचारों, अभिवृत्तियों, संवेदनाओं तथा सूचनाओं एवं ज्ञान के विनिमय करने की एक प्रक्रिया है।
एन्डरसन के अनुसार, “सम्प्रेषण एक गत्यात्मक प्रक्रिया हैं, जिसमें व्यक्ति चेतनतया अथवा अचेतनतया, दूसरों के संज्ञानात्मक ढाँचे को सांकेतिक (हाव-भाव आदि) रूप में, उपकरणों या साधनों द्वारा प्रभावित करता है। “
Communication की परिभाषा देते हुये लीगेन्स कहते हैं, “सम्प्रेषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा दो या दो से अधिक लोग विचारों, तथ्यों, भावनाओं तथा प्रभावों आदि का इस प्रकार (परस्पर) विनिमव करते हैं कि सभी लोग प्राप्त संदेशों को समझ जाते हैं। सम्प्रेषण में संदेश देने वाले तथा संदेश ग्रहण करने वाले के मध्य संदशों के माध्यम से समन्वय स्थापित किया जाता है।”
लूगीस एवं वीगल के अनुसार “सम्प्रेषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सामाजिक व्यवस्था के अन्तर्गत सूचनाओं, निर्देशों तथा निर्णयों द्वारा लोगों के विचारों, मतों तथा अभिवृत्तियों में परिवर्तन लाया जाता है। “
एडगर डेले (Edgar Dale) के अनुसार, “Communication is the sharing of ideas and feelings in a mood of mutuality. ” सम्प्रेषण विचार- विनिमय के मूड (Mood) में विचारों तथा भावनाओं को परस्पर जानने तथा समझने की प्रक्रिया है।
Communication की तीन सरल किन्तु महत्त्वपूर्ण परिभाषायें नीचे उद्धृत की जा रही हैं-
- “Communication is the process by which an idea is transferred from a source to a receiver with the intention of changing his behaviour.”
- “It is a mutual exchange of facts, thought or perceptions leading to a common understanding of all parties. It does not necessarily imply agreement.”
- “Communication is the transfer of information from the sender to the receiver with the information being understood by the receiver.”
सम्प्रेषण की प्रकृति एवं विशेषताएँ (Nature and Characteristics of Communication)
उपर्युक्त सभी परिभाषाओं के आधार पर अग्रांकित प्रकार से Communication प्रक्रिया की प्रकृति एवं विशेषताओं का दिग्दर्शन किया जा सकता है-
- Communication एक पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करने की एक प्रक्रिया है।
- इसमें ‘विचार-विमर्श’ तथा ‘विचार-विनिमय’ पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
- यह द्विबाही (Two way) प्रक्रिया है अथ्रांत् इसमें दो पक्ष होते हैं । एक संदेश देने वाला तथा दूसरा संदेश ग्रहण करने वाला।
- Communication प्रक्रिया एक उद्देश्ययुक्त प्रक्रिया होती है।
- Communication में मनोवैज्ञानिक सामाजिक पक्ष (जैसे विचार, संवेदनायें, भावनायें तथा संवग) समावेशित होते है।
- प्रभावशाली Communication, उत्तम शिक्षण के लिये एक बुनियादी तत्व है।
- Communication प्रक्रिया में प्रत्यक्षीकरण (Purception) समावेशित होता है। (यदि संदेश प्राप्त करने वाला व्यक्ति, संदेश का सन्दर्भ सही हंग से प्रत्यक्षीकत नहीं कर पाता तो सही Communication सप्भव नहीं हैं।)
- Communication एवं सूचनाओं (Information) में अन्तर हैं। सूचनाओं में तर्क, औपचारिकता तथा Impersonality की विशेषतायें होती हैं; जैसे-पुस्तक एक सूचना है या टी. बी. पर प्रोग्राम सूचनाओं से भरे रहते हैं। लेकिन जब तक पुस्तक पढ़ी न जाये या टी. वी. खोला न जाये ( उसका on का बटन न दबाया जाये) तब तक Communication सम्भव नहीं है। सूचनायें बस्तुनिष्ठ (Objective) होती हैं जबकि सम्प्रेषण में व्यक्ति या व्यक्तियों के व्यक्तिगत प्रत्यक्षीकरण की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- Communication में सामान्यत: व्यक्ति उन्हीं चीजोंविचारों का प्रत्यक्षींकरण करते हैं, जिनकी उन्हें अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं, मूल्यों, प्रेरकों, परिस्थितियों या पृष्ठभूमि के अनुसार चाह (Expectation) या प्रत्याशा होती है।
- Communication मानवीय तथा सामाजिक वातावरण को बनाये (Maintain) रखने का कार्य करता है ।
- Communication के चार मुख्य कार्य हैं-
- (a) सूचना प्रदान करना।
- (b) निर्देश अथवा आदेश या संदेश प्रेषित (प्रसारित करना)।
- (c) परस्पर विश्वास जाग्रत करना।
- (d) समन्वय स्थापित करना।
- Communication की प्रक्रिया में परस्पर अन्त:क्रिया तथा पृष्टपोषण होना आवश्यक होता है।
- Communication में विचारों या सूचनाओं को मौखिक ( बोलकर), लिखित ( लिखकर) अथवा सांकेतिक (संकेतों) के रूप में प्रेपित किया जाता है एवं ग्रहण किया जाता है।
- Communication सदैव गत्यात्मक (Dynamic) प्रक्रिया होती है।
क्या आप जानते हैं “सम्प्रेषण एक गत्वात्मक, उद्देश्यपूर्ण, द्विध्रवीय (द्विवाही) प्रक्रिया हैं जिसमें सम्प्रेषण-सामग्री, सम्प्रेषण करने बाला तथा सम्प्रेषण ग्रहण करने वाला होता है। इसमें सूचनाओं तथधा विचारों का सम्प्रेषण एवं ग्रहण, लिखित, मौरिखक अरथवा संकेतों के माध्यम से होता है।” (कुलश्रेष्ठ, 1998)
सम्प्रेषण की प्रक्रिया (Process of Communication)
सम्प्रेषण एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मानवीय सम्बन्ध स्थापित होते हैं, दूढ़ होते हैं तथा विकसित होते हैं। सम्प्रेषण को प्रक्रिया, सामाजिक संरचना में ऐसे गुथे हुए हैं कि बिना सम्प्रेषण के सामाजिक जीवन की कल्पना करना ही मुश्किल होता है।
सम्प्रंषण की प्रक्रिया को सरल्न मॉडल के रूप में नीचे प्रदर्शित किया जा रहा है-
इस मॉडल के अनुसार जो व्यक्ति संदेश भेजता है वह संदेश बनाता है उसे लिखता है (Encoding), फिर किसी न किसी माध्यम के द्वारा (जैसे-रेडियो, टेलीफोन, तार, भाषण आदि) संदेश प्रेषित किया जाता है। प्रेषित संदेश जहाँ पहुँचाता है वहाँ उसे पढ़कर (Decode) करते हैं और संदेश जिसके लिये है उस तक उसे पहुँचाते हैं । यह व्यक्ति (यदि आवश्यकता होती है तो) संदेश प्राप्ति की सूचना देता है (Fecdback)।
सम्प्रेषण के प्रकार (Types of Communication)
प्रभावशाली शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को गत्यात्मक, सक्रिय तथा जीवन्त बनाने के लिये सम्प्रेषण की अनवरता या निरन्तरता आवश्यक होती है। शिक्षण में सम्प्रेषण को कई प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे शाब्दिक तथा अशाब्दिक सम्प्रेषण, शैक्षिक तथा सावंजनिक सम्प्रेषण आदि।
- शाब्दिक सम्प्रेषण (Verbal Communication)- शात्दिक सम्प्रेषण में सदैव भाषा का प्रयोग किया जाता हैं। यह सम्प्रेषण मौखिक (Oral) रूप में वाणी द्वारा तथा लिखित रूप में शब्दों अथवा संकेतों के द्वारा विचार अथवा भावनाओं को दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिये प्रयोग किंया जाता है। शाब्दिक सम्प्रेषण को पुन: दो प्रकार के सम्प्रेषणों में वर्गीकृत किया जा सकता है-(अ) मौखिक सम्प्रेषण (ब) लिखित सम्प्रेषण।
( अ) मौखिक सम्प्रेषण– मौखिक सम्प्रेषण में मौखिक रूप में वाणी द्वारा तथ्यों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। इस विधि में संदेश देने वाला तथा संदेश ग्रहण करने वाला, दोनों ही परस्पर आमने सामने रहते हैं। मौखिक सम्प्रेषण में वातां, व्याख्या, परिचर्चा सामूहिक चर्चा, प्रश्नांत्तर तथा कहानी आदि के माध्यम से विचारों की अभिव्यक्ति की जाती है।
(ब) लिखित सम्प्रेषण– इसमें संदेश देने वाले तथा संदेश पाने वाले व्यक्तियों का आपने सामने होना आवश्यक नहीं है। इसमें संदेश देने वाला लिखंखत रूप में शब्दों या संकेतों के द्वारा इस प्रकार से संदेश प्रदान करता है कि सदेश प्राप्त करने बाला व्यक्ति (संदेश देने बाले व्यक्ति की भावना को समझकर) अर्थ लगाते हैं।
लिखित सदेशों की सुग्राह्यता के लिये आवश्यक है कि लिखित भाषा सरल, सुगम, स्पष्ट तथा बोधगम्य हो, ताकि संदेश बिना किसी भ्रम के सही रूप में ग्रहणकर्ता ग्रहण कर सके। इसमें संदेश सूचना, सही ढंग से, सही शब्दों के माध्यम से तथा छोटे-छोटे पदों में प्रभावशाली विधि से प्रस्तुत की जाती है।
- अशाब्दिक सम्प्रेषण (Non-verbal Communication)- अशाब्दिक सम्प्रेषण में भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसमें वाणी संकेत, चक्षु-सम्पर्क तथा मुख-मुद्राओं के प्रयोग एवं स्पर्श सम्पर्क आदि प्रमुख प्रकार के सम्प्रेषण होते हैं-
( अ) वाणी सम्प्रेषण- वाणी सम्प्रेषण में विचारों तथा भावनाओं की अभिव्यक्ति व्यक्तिगत रूप से अथवा छोटे-छोटे समूहों में आमने-सामने रहकर वाणी द्वारा की जाती हैं| उदाहरण के लिये वार्ता के मध्य Yes, Yes (हाँ, हाँ) कहना या बीच-बीच में “हूँ, हूँ” अथवा “हाँ, हूँ” कहते चले जाना। मुँह से सोटी बजाना, मुस्कराना, बहुत जोर से बोल देना, चीखना, घिधिवाना ठहाके लगाना आदि।
( ब) चक्षु सम्पर्क एवं मुख मुद्रायें- व्यक्तिगत सम्प्रेषण में चक्षु सम्पर्क तथा मुख मुद्राओं का प्रदर्शन अत्यन्त प्रभावशाली माना जाता है। कक्षा मे चक्षु सम्पर्क (Eve to eye contact) के द्वारा शिक्षक अपने छात्रों की मन:स्थिति का सही अंदाजा लगाने में सफल होते हैं। संवेगात्मक स्थिति की अभिव्यक्तियों में छात्रों की मुख मुद्रायें बहुत अहम् भूमिका निभाती हैं। मुख् मुद्राओं के माध्यम से प्रसन्नता, भय, क्रोध, शोक, तथा आश्चर्य आदि का सम्प्रेषण सरलता से किया जाता है बधिरों एवं गूँगे व्यक्तियों के लिये तो यह सम्प्रेषण अत्यन्त उपयोगी है।
(स) स्पर्श सम्पर्क- स्पर्श सम्पर्क में स्पशं को ही सम्प्रेषण का प्रमुख माध्यम बनागा जाता हैं। स्पर्श के माध्यम से व्यक्ति अपनी भावनाओं एवं विचारों की अभिव्यक्ति करने में समर्थ होते हैं। हाथ मिलाते ही पता चल कि यह दोस्ती का हाथ है या दुश्मनी का । यह प्यार का हाथ है अथवा दिखावे के लिये प्रदर्शन का। माँ के हाथ का एक स्पर्श मात्र उसके शिशु को बहुत कुछ कह जाता हैं । प्रशंसा की एक शबासी, प्यार का एक चुम्बन अपने आप बहुत-सी भावनाओं संवेदनाओं तथा विचारों की अभिव्यक्ति का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। दृष्टिहीन छात्रों के लिये तो ‘स्पर्श’ एक बहुत बड़ा वरदान सिद्ध हुआ है।
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