महत्वपूर्ण व्यक्तित्व / Important Personalities

लोकप्रिय नेता – प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee)

लोकप्रिय नेता – प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee)

सफल वक्ता के रूप में ख्यातिलब्ध अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को हुआ। आपके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी र्कूल शिक्षक थे आपके दादा पंडित श्यामलाल वाजपेयी संस्कृत के जाने माने विद्वान थे । अटल जी के नाम से प्रसिद्ध श्री वाजपेयी जी की शिक्षा विक्टोरिया कालेज में हुई वर्तमान में इस कालेज का नाम बदलकर लक्ष्मीबाई कालेज कर दिया गया है । राजनीति विज्ञान में रनातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए श्री वाजपेयी कानपुर चले गये जहां उन्होंने डी.ए.वी. कालेज से राजनीतिशास्त्र में एम.ए. पास किया। इसके बाद उन्होंने कानून की शिक्षा शुरू की। उल्लेखनीय है कि श्री वाजपेयी के पिता श्री कुष्ण बिहारी वाजपेयी भी नौकरी से अवकाश लेने के बाद अटल जी के साथ ही कानून की शिक्षा लेने उनके कालेज आ गये बाप-बेटे दोनों कालेज के एक ही कमरे में रहते थे अटल जी कानून की शिक्षा पूरी नहीं कर पाये।

जनता के बीच प्रसिद्द अटल बिहारी वाजपेयी अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे। 13 अक्टूबर 1999 को उन्होंने लगातार दूसरी बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नई गठबंधन सरकार के प्रमुख के रूप में भारत के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया। वे 1996 में बहुत कम समय के लिए प्रधानमंत्री बने थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद वह पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो लगातार दो बार प्रधानमंत्री बने।
वरिष्ठ सांसद श्री वाजपेयी जी राजनीति के क्षेत्र में चार दशकों तक सक्रिय रहे। वह लोकसभा (लोगों का सदन) में नौ बार और राज्य सभा (राज्यों की सभा) में दो बार चुने गए जो अपने आप में ही एक कीर्तिमान है।
भारत के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, संसद की विभिन्न महत्वपूर्ण स्थायी समितियों के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने आजादी के बाद भारत की घरेलू और विदेश नीति को आकार देने में एक सक्रिय भूमिका निभाई।

श्री वाजपेयी अपने प्रारम्भिक जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गये । इसके अलावा वह आर्य कुमार सभा के भी सक्रिय सदस्य रहे। 1942 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के तहत उन्हें जेल जाना पड़ा । 1946 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने उन्हें अपना प्रचारक बनाकर लड्डुओं की नगरी संडीला भेजा। उनकी प्रतिभा को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने लखनऊ से प्रकाशित राष्ट्रधर्म पत्रिका का संपादक बना दिया। इसके बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपना मुखपत्र पाञ्चजन्य शुरू किया जिसका पहला संपादक श्री वाजपेयी जी को बनाया गया। वाजपेयी जी ने पत्रकारिता क्षेत्र में कुछ ही वर्षों में अपने को स्थापित कर ख्याति अर्जित कर ली। बाद में वे वाराणसी से प्रकाशित चेतना, लखनऊ से प्रकाशित दैनिक स्वदेश और दिल्ली से प्रकाशित वीर अर्जुन के संपादक रहे।

श्री वाजपेयी जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। अपनी. क्षमता, बौद्धिक कुशलता व सफल वक्ता की छवि के कारण श्री वाजपेयी श्यामा प्रसाद जी के निजी सचिव बन गये। श्री वाजपेयी ने 1955 में पहली बार लोक सभा चुनाव लड़ा। उस समय वह विजयालक्ष्मी पंडित द्वारा खाली की गयी लखनऊ लोक सभा सीट से उप चुनाव हार गये आज भी श्री वाजपेयी का चुनाव क्षेत्र लखनऊ ही है।

1957 में बलरामपुर सीट से चुनाव जीतकर श्री चाजपेयी लोक सभा में गये लेकिन 1962 में वे कांग्रेस की सुभद्रा जोशी से चुनाव हार गये। 1997 में उन्होंने फिर इस सीट पर कब्जा कर लिया। 1971 में ग्वालियर, 1977 और 1980 में नई दिल्ली, 1991, 1996 तथा 1998 में लखनऊ सीट से विजय प्राप्त की। आप दो बार राज्य सभा के सदस्य भी रहे।1968 से 1973 तक आप जनसंघ के अध्यक्ष रहे । 1977 के बाद जनता दल के विभाजन के बाद भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई। जिसके आप संस्थापक सदस्यों में शामिल थे।

1962 में आपको पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया 1994 में आप श्रेष्ठ सांसद के रूप में गोविन्द बल्लभ पन्त और लोकमान्य तिलक पुरस्कारों से नवाजे गये। आपातकाल के बाद मोरार जी देसाई जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने आपको अपने मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री बनाया। विदेश मंत्री पद पर रहते हुए आपने पड़ोसी देशों खासकर पाकिस्तान के साथ मधुर संबंध बनाने की पहल कर सबको चौका दिया। संयुक्त राष्ट्र महासभा में आपने अपनी मातृ भाषा हिन्दी में भाषण दे एक नया इतिहास रचा।

श्री वाजपेयी एक प्रखर नेता होने के साथ-साथ कवि व लेखक भी है। आपने अनेक पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनके लोकसभा में भाषणों का संग्रह, ‘लोकसभा में अटल जी’, ‘मृत्यु या हत्या’, ‘अमर बलिदान’, ‘कैदी कविराय की कुण्डलियोँ, ‘न्यू डाइमेन्शन ऑफ इण्डियन फॉरेन पालिसी’, फोर डिकेट्स इन पार्लियामेन्ट आदि प्रमुख हैं। आपका काव्य संग्रह ‘मेरी इक्यावन कविताएं’ प्रमुख है।

विनम्र, कुशाग्र बुद्धि एवं अद्वितीय प्रतिभा सम्पन्न श्री वाजपेयी 19 मार्च, 1998 को संसदीय लोकतन्त्र के सर्वोच्च पद पर प्रधानमन्त्री के रूप में दुबारा आसीन हुए हैं। लगभग 22 माह पहले भी वे इस पद को सुशोभित कर चुके हैं लेकिन अल्प बहुमत होने के कारण उन्हें त्याग पत्र देना पड़ा था। विशाल जनादेश ने श्री वाजपेयी से स्थायी और सुदृढ़ सरकार देने का आग्रह किया है।

 

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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