इतिहास / History

नवपाषाण काल (Neolithic Age)- नवपाषाण क्रांति (The Neolithic Revolution), उद्भव, मानव जीवन

नवपाषाण काल
नवपाषाण काल

नवपाषाण काल (Neolithic Age) नवपाषाण क्रांति (The Neolithic Revolution), उद्भव, मानव जीवन

नवपाषाण काल (Introduction)

उत्तर-पाषाण काल का मनुष्य अपने पूर्वजों की तुलना में अधिक बुद्धिमान था । उनके हथियार और औजार अधिक नुकीले और तेज धार के होते थे। अब पेड़ों का स्थान गुफाओं ने ले लिया था, फिर भी स्थायी आवास का निर्माण करना नहीं सीखा था। काफी लम्बे समय बाद झोंपड़ियों का निर्माण तथा उसमें निवास करने की आदत मनुष्य ने सीखी थी। अब वे लोग अपना शरीर भी ढकने लगे थे इसी युग में किसी बुद्धिमान व्यक्ति ने पहिये का आविष्कार किया और यह आविष्कार मानव सभ्यता की समृद्धि का सबसे बड़ा कारण बन गया। इससे यातायात के साधनों का विकास हुआ।

नये मानव समूहों का उद्भव (Rise of New Human Groups)

पूर्व-पाषाण काल के अन्तिम समय में तीसरा हिमाबर्तन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप एशिया और यूरोप के विस्तृत इलाकों में जलवायु अति शीतल बन गई और अनेक जीवधारियों की नस्लें विलुप्त हो गई। सम्भवत: निन्डरथल जाति अचानक लोप हो गई। परन्तु अग्नि के आविष्कार से मनुष्य जीवित रह गया और निन्डरथल मानव के स्थान पर पूर्ण मानव की कुछ नई जातियों-क्रोमेग्नोन, ग्रिमाल्डी, कोवकोपेल और शॉसलाद आदि का उद्भव हुआ।

क्रोमेग्नोन अथवा क्रोमान्यो मानव के अवशेष 1866 में दक्षिणी फ्राँस की क्रोमन्यो गुफाओं में मिले। इनके आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि क्रोमेग्नोन मानव उन्नत कपाल, चौड़ी मुखाकृति और ठोढ़ी तथा नुकीली नाक वाला रहा होगा। ग्रिमाल्डी मानव के अवशेष फ्र्रांस के भूमध्यसागरीय तट पर स्थित ग्रिमाल्डी गुफाओं में मिले हैं। इनका सिर गोल, नाक चौड़ी, जबड़ा छोटा और ठोढ़ी विकसित थी। परन्तु इनका कद अधिक लम्बा नहीं था विद्वानों का मानना है कि ये आधुनिक नीग्रो जाति के लोगों से मिलते-जुलते रहे होंगे। कोवकोपेल और शॉसलाद जातियों के अवशेष भी फ्रांस में ही मिले हैं।

सामान्य जीवन- उत्तर-पाषाण काल का मनुष्य अपने पूर्वजों की तुलना में अधिक बुद्धिमान था उनके हथियार और औजार अधिक नुकीले और तेज धार के होते थे अब पेड़ों का स्थान गुफाओं ने ले लिया था, फिर भी स्थायी आवास का निर्माण करना नहीं सीखा था। काफी लम्बे समय बाद झोंपडियों का निर्माण तथा उसमें निवास करने की आदत मनुष्य ने सीखी थी। अब वे लोग अपना शरीर भी ढकने लगे थे। उनके द्वारा निर्मित सुइयों से यह अनुमान लगाया जाता है कि वे जानवरों की खाल को सिलकर शरीर को ढकने की अनेक प्रकार की वस्तुयें बनाना जानते थे। अपने विकास की इस अवस्था में मनुष्य का मुख्य उद्यम हिरन और मैमथ (महागज) जैसे बड़े जानवरों का शिकार करना था। इसके लिए उन्होंने धनुष-बाण बना लिया था। इस युग में भी बह कन्द-मूल, फल आदि खाद्य पदार्थों का संग्रह करता था।

कलात्मक प्रतिभा का विकास- उत्तर-पाषाणकाल के मानव की एक विशेषता है, उसकी कलात्मक प्रतिभा का विकास। अब वह अस्थियों और सींगों से बनाये गये हथियारों पर नक्काशी का काम करने लगा था । हाथीदाँत और मिट्टी की मूर्तियाँ बनाने लगा। सम्भवत: वे लोग मातृशक्ति के उपासक रहे होंगे, इसलिए नारी मूर्तियाँ अधिक बनाते थे। भित्ति-चित्रकला की शुरुआत भी इन्हीं लोगों ने की थी। उनकी चित्रकला के सर्वोत्म नमूने उत्तरी स्पेन में अल्तमीरा की गुफाओं की छतों और दीवारों पर मिले हैं बारहसिंगा, भालू, अश्व आदि पशुओं के चित्रों में जो रंग भरे गये हैं, उनका रंग अभी तक वैसा ही है।

परलोक सम्बन्धी विश्वास- उत्तर-पाषाण काल के लोगों के परलोक सम्बन्धी विश्वास काफी परिपक्व हो गये थे। वे अपने मृतकों को दफनाते समय उनके साथ आभूषण, हथियार और खाद्य पदार्थ भी रखते थे। उन लोगों में अपने मृतकों के शरीर को लाल रंग से रंगने की विचित्र प्रथा प्रचलित थी। वे लोग प्राकृतिक शक्तियों एवं पशुओं की उपासना भी करते थे।

सामाजिक संरचना- इस युग की सामाजिक संरचना की मुख्य विशेषता थी – मातृक सगोत्रता ( फीमेल किनशिप)। उस समय समूह-विवाहों का ही चलन था, जिसकी वजह से बच्चे अपने पिताओं के स्थान पर अपनी माताओं को ही जानते थे। मातृतन्त्रात्मक पद्धति पर आधारित समाज कई हजार वर्ष तक अस्तित्व में बना रहा।

नवपाषाण काल का मानव जीवन (Human Life in Neolithic Age)

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव-नव-पाषाण काल को मानव सभ्यता के बिकास क्रम में एक महत्त्वपूर्ण मोड बिन्दु माना जाता हैं। विद्वानों ने इसका समय 10.000 ई. पू. से 300 ई. पू. तक माना है । इस काल की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता जलबायु का उष्णतर होना था जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी के अनेक भागों में जंगलों का विकास हुआ। परन्तु उष्ण जलबायु ने एशिया और उत्तरी अफ्रीका के अनेक हरे-भरे क्षेत्रों को रेगिस्तान में परिवर्तित कर दिया। नतीजा यह निकला कि इन क्षेत्रों में विचरण करने वाले लोगों के लिए शिकार तथा कन्द-मूल और फलों से जीविका चलाना कठिन हो गया, क्योंकि इस समय तक मानव जाति की आबादी काफी बढ चुकी थी।

कृषि का आविष्कार- इन्हीं परिस्थितियों में कृषि और पशुपालन के आदिम रूपों का आविर्भाव हुआ। किसी ने यह खोज की कि सूखे बीजों को गीली मिट्टी में दबा दिया जाए तो कुछ महीनों के बाद उन बरीजों से कई गुना अधिक बीज उपलब्ध हो सकते हैं इस रहस्य ने कृषि की आधारशिला रख दी। इस खोज ने मनुष्य की भ्रमणशीलता का अन्त कर दिया। अब वह घर बनाकर रहने लगा और इसी के साथ मनुष्य में व्यक्तिगत सम्पत्ति तथा अपने स्थान के प्रति निष्ठा की भावना का उदय हुआ। इसके परिणामस्वरूप सामाजिक व्यवस्था की आवश्यकता अनुभव हुई और कई सामाजिक संस्थाओं का उद्भव हुआ। इस प्रकार, कृषि का आविष्कार मानव – जीवन में प्रथम औद्योगिक क्रान्ति थी, जिसने आजीविका का एक नियमित एवं स्थायी साधन प्रदान किया तथा सामाजिक संस्थाओं की आधारशिला रखी।

कृषि में पहले-पहल काम में लाये जाने वाले औजार-खांतियाँ और कुदालें बेहद अपरिष्कृत थे पैदा की जाने वाली फसलें थीं-जौ, गेहूँ, बाजरा और मटर जैसे अनाज तथा कुछ साग-सब्जियाँ।

नोट्स- ‘कुम्हार के चाक’ का आविष्कार इसी युग में हुआ जिससे मिट्टी के बर्तन बनने शुरू हो गए।

पशुपालन- नवपाषाण काल की दूसरी मुख्य विशेषता है- पशुपालन शायद आखेट के अनुभव ने पशुपालन की प्रवृति को जन्म दिया हो। उस समय तक लोग हॉका करके अथवा शिकार को चारों ओर से घेर करके शिकार करना सीख चुके थे और इस काम में कुत्तों का सहयोग भी लिया जाने लगा। अर्थात् मनुष्य ने सर्वप्रथम कुत्तों को पालतू बनाया होगा। इसके बाद गधा, बकरी, भेड़, गाय, भैंस और अन्त में घोड़े को पालतू बनाया होगा। अब वह पशुओं की सहायता से कृषि करने लगा। इससे पशुपालन का महत्त्व और भी अधिक बढ़ गया।

मिट्टी के बर्तन बनाने की कला- कृषि कर्म और पशुपालन से मनुष्य को खाने-पीने की समस्या से मुक्ति मिल गई परन्तु खाद्य सामग्री को सुरक्षित रखने की समस्या उत्पन्न हो गई। इसका समाधान उसने मिट्टी के बड़े-बड़े बर्तन बनाने की कला का आविष्कार करके किया। इसी समय ‘कुम्हार के चाक’ का भी आविष्कार हुआ जिससे दैनिक जीवन में काम आने वाले मिट्टी के बर्तन बनने शुरू हो गये |

पहिये का आविष्कार- इसी युग में किसी बुद्धिमान व्यक्ति ने पहिये का आविष्कार किया और यह आविष्कार मानव सभ्यता की समृद्धि का सबसे बड़ा कारण बन गया । इससे यातायात के साधनों का विकास हुआ । लोगों ने घोड़ों या बैलों से खींची जानेवाली गाड़ियाँ बनाईं। पहियेदार गाड़ियों ने विभिन्न दूरी पर बसी मानव-बस्तियों को एक-दूसरे के समीप ला दिया। अब लोग अपने अतिरिक्त सामान का विनिमय करने लगे जिससे व्यापार- वाणिज्य का आद्य युग शुरू हुआ।

कातने और बुनने की कला- इस युग में मनुष्य ने एक और उपलब्धि प्राप्त की। वह थी-कातने और बुनने की कला का विकास। इसके लिए करधा और चरखा बनाया गया बुनने की कला ने मानव जीवन को सभ्यता के ढाँचे में ढालना शुरू कर दिया। अब वह सुत, पटसन और ऊन से वस्त्र बनाना सीख गया और इन वस्त्रों से अपने शरीर को ढकने लगा।

प्रगति के नये कदम- एक स्थान पर बस जाने से जनसंख्या में अभृतपूर्व वृद्धि होने लगी और धीरें धीरे मनुष्य नये-नये क्षेत्रों को आबाद करने लगा। वनों को काटने और लकड़ी को चीरने-फाडूने वाले औजार बनाये गये जिससे काष्ठ कला का विकास हुआ। मिट्टी से इंटें बनाना और ईंटों से रहने के आवास बनाने की कला का विकास हुआ। व्यापक पैमाने पर कृषि कर्म के लिए खुर्पी, कुदाल, हल, हौँसिया और चक्की का प्रयोग  शुरू हुआ| झीलों और नदियों को पार करने के लिये नावों का निर्माण किया गया। उपर्युक्त सभी आविष्कारों के फलस्वरूप नव पाषाण के मानव इतिहास को ‘प्रगति का प्रथम महान् युग’ कहा जाता है, जिसने मानव जीवन में एक क्रान्ति ला दी।

स्त्रियों का स्थान- इस नये युग के निर्माण की प्रारम्भिक अवस्था में स्त्रियों की भूमिका अधिक महत्त्वपूर्ण रही। खेती का बहुत-सा काम, गेहूँ पीसने का काम, खाना बनाना, सृत कातना, कपड़ा बुनना तथा बर्तन बनाना आदि अधिकांश कार्यों का दायित्व स्त्रियों का ही रहा होगा। अत: समाज में उनकी स्थिति काफी महत्त्वपूर्ण बनी रही। पुरुषों का मुख्य दायित्व फसलों की रक्षा, शिकार और पशुपालन रहा । औजार तथा हथियार बनाना भी उन्हीं का काम था। परन्तु बाद में कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व कायम हो गया। हल के आविष्कार और जुताई में पशुओं की सहायता से कृषि कर्म स्त्रियों के लिए अधिक श्रअम साध्य सिद्ध हुआ। अत: स्त्रियों को अब घरेलू कामों को सँभालने की नई भूमिका प्रदान कर दी गई।

सामाजिक संस्थाओं और मुखिया का आविर्भाव- नवपाषाण काल में सामाजिक तथा आर्थिक जीवन की मुख्य निदेशक शक्ति क्या थी, इसका उत्तर सरल नहीं हैं । इसी प्रकार, इस समय के पारिवारिक सम्बन्धों के बारे में भी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। वैसे विद्वानों की मान्यता है कि इस युग में भी मातृसत्तात्मक परिवार प्रथा का प्रचलन रहा होगा। शायद इस युग के अन्तिम काल में विवाह की नियमित प्रथा का सूत्रपात हो गया था। संभवत: ‘कत्रिला’ उसकी सामाजिक इकाई था जिसके अन्तर्गत अनेक परिवार होते थे और सभी लोग कबीले के मुखिया के प्रति निष्ठा की भावना रखते थे। कृषि कर्म से मनुष्य में समृद्धि की भावना जागृत हुई और अब वह अपनी सन्तान के लिए विविध सामग्रियाँ जमा करने लगा। इससे सम्पत्ति और परिवार के प्रति ममता उत्पन्न हुई और मनुष्यों में व्यक्तिगत सम्पत्ति की भावना का विकास हुआ। इसी के साथ कृषि और सम्पत्ति की सुरक्षा की आवश्यकता अनुभव हुई और ‘मुखिया’ का आविर्भाव हुआ। इसी से कालान्तर में राज्य और राजा की भावना का उदय हुआ। इस प्रकार नव पाषाण काल में मानव सभ्यता के कुछ मुख्य आधारों की स्थापना हुई; फिर भी, इस बुग के मनुष्य को पूर्ण सभ्य नहीं कहा जा सकता, क्योंकि सभ्यता के अन्य आवश्यक मूल तत्त्वों का विकास अभी तक नहीं हो पाया था।

सारांश (Summary)

  • उत्तर-पाषाणकाल के मानव की एक विशेषता है उसकी कलात्मक प्रतिभा का विकास।
  • उत्तर-पाषाण काल के लोगों के परलोक सम्बन्धी विश्वास काफी परिपक्व हो गये थे। वे मृतकों को दफनाते समय उनके साथ आभूषण, हथियार और खाद्य पदार्थ भी रखते थे।
  • नव-पाषाण काल को मानव सभ्यता के विकास क्रम में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ बिन्दु माना जाता है । विद्वानों ने इसका समय 10.(000 ई. पू. से 3000 ई. पू. तक माना है।
  • कृषि कर्म और पशुपालन से मनुष्य को खाने पीने की समस्या से मुक्ति मिल गई परन्तु खाद्य सामग्री को सुरक्षित रखने की समस्या उत्पन्न हो गई। इसका समाधान उसने मिट्टी के बड़े-बड़े बर्तन बनाने की कला का आविष्कार करके किया।
  • इस युग में मनुष्य ने एक और उपलब्धि प्राप्त की । वह थी -कातने और बुनने की कला का विकास| इसके लिए करघा और चरखा बनाया गया।
  • इस नये युग के निर्माण की प्रारम्भिक अवस्था में स्त्रियों की भूमिका अधिक महत्त्वपूर्ण रही। खेती का बहुत-सा काम, गेहूँ पीसने का काम, खाना बनाना, सूत कातना, कपड़ा बुनना तथा बर्तन बनाना आदि अधिकांश कार्यों का दायित्व स्त्रियों का ही रहा होगा ।
  • नवपाषाण काल की दूसरी मुख्य विशेषता है-पशुपालन। शायद आखेट के अनुभव ने पशुपालन की प्रवृत्ति को जन्म दिया हो।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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