भूगोल / Geography

वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting Evaporation in Hindi

वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Evaporation)

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वार्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक-

वाष्पीकरण की क्रिया जलीय एवं स्थलीय भागों पर अनवरत रूप से चलती रहती है। धरातल पर जल भण्डार, मिट्टी एवं प्राकृतिक वनस्पतियाँ अलग-अलग रूपों में वाष्पीकरण सम्पादित करती है। वाष्पन की प्रकृति अलग-अलग दशाओं में परिवर्तनशील होती है तथा वाष्पन के कारक भी बदल जाते हैं। अतः यहाँ परक्षेत्रीय विभिन्नताओं के आधार पर वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है।

 1. स्वतन्त्र जलीय भागों से होने वाले वाष्पीकरण की मात्रा को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Evaporation from free Water Surfaces) :

  • जलवायुविक कारक (Climate Factors ):

इन कारकों के अन्न्तगत मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी सूक्ष्म निर्माणक प्रक्रनों को सम्मिलित किया जाता है। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन को भी उसी ढंग से प्रभावित करते हैं। जलवायु पर आधारित कारक निम्नलिखित है –

1. सौर्य विकिरण या प्रकाश (Solar Radiation or Light) :

वाष्पीकरण को प्रधावित करने वाले कारकों में सौर्य विकिरण एक महत्वपूर्ण कारक है। सौर्य विकिरण द्वारा वाष्पन सतह का तापमान सीधे प्रभावित होता है। वाष्पीकरण एवं वाष्पोत्सर्जन हेतु ऊर्जा की निरन्तर आपूर्ति आवश्यक है। जिन क्षेत्रों में अत्यधिक सौ्विक ताप के फलस्वरूप सौर्य विकिरण अधिक पाया जाता है वहाँ वाष्पीकरण एवं वाष्पोत्सर्जन में आकस्मिक वृद्धि हो जाती है। सौर्य विकिरण स्थान विशेष के अक्षांशीय विस्तार, मौसम, दिन की अवधि तथा आकाश की दशा जैसे अनेक पर्यावरणीय कारकों के प्रभाव से परिवर्तित होता रहता है अतः वाष्पीकरण एवं वाष्पोत्सर्जन का उपर्युक्त दशाओं में परिवर्तित होना अनिवार्य है। धुवीय प्रदेशों में सौर्य विकिरण कम मिलता है। फलतः वाष्पीकरण की वार्षिक मात्रा भी कम मिलती है किन्तु भूमध्य रेखीय प्रदेशों में अत्यधिक वार्षिक सौर्य विकिरण के कारण वार्षिक वाष्पीकरण भी बहुत अधिक होता है।

सौर्य प्रकाश का वाष्पोत्सर्जन क्रिया एवं गति पर सीधा प्रभाव पड़ता है। सौर्य प्रकाश से पत्तियों के रन्ध खुल जाते हैं किन्तु जैसे-जैसे सौर्य प्रकाश या ताप कम होता है। वाष्पीकरण एवं वाष्पोत्सर्जन की मात्रा एवं गति कम हो जाती है। पूर्ण अन्धकार में पत्तियों के रन्ध बन्द हो जाते हैं जिसके कारण वाष्पोत्सर्जन बाधित हो जाता है।

2. तापमान (Temperature):

स्वतन्त्र जलीय भागों में उपलब्ध वाष्पदाब की मात्रा वार्पीकरण की दर को निर्धारित एवं प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है जल के कणों की गतिज ऊर्जा भी बढ़ती है अतः ऊर्जा वृद्धि के साथ जल के पलायित कणों की संख्या भी बढ़ती है और सम्बन्धित वाष्प दाब भी बढ़ जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि ताप वृद्धि से वाष्पीकरण में वृद्धि होती है किन्तु यह सम्बन्ध तभी प्रभावकारी होता है जब वायु एवं जलीय तापमान में पर्याप्त अन्तर रहता है। वायु एवं जल के समान तापमान, या समान ताप वृद्धि दर के होने पर वाष्पीकरण दर में वृद्धि नहीं होती है। यही नहीं दो महीनों में औसत सम ताप की स्थिति होने के बावजूद भी औसत वाष्पीकरण समान नहीं होता है। गहरे जलीय भागों में समान औसत मासिक तापमान की स्थिति में गर्मी के दिनों की अपेक्षा जाड़े की ऋतु में वाष्पीकरण अधिक होता है क्योंकिं ग्रीष्म काल में अधिकांश तापमान जल को गर्म करने में ही समाप्त हो जाता है। वायुमण्डलीय तापवृद्धि से वायु की आर्द्रता धारण क्षमता एवं मात्रा कम हो जाती है अतः वायु में वाष्प धारण क्षमता बढ़ जाती है और वाष्पीकरण वाष्पोत्सर्जन में भी वृद्धि होती है। अत्यधिक ताप से वृक्षों की पत्तियों के रन्भ अत्यधिक खुलते हैं परिणामस्वरूप वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है।

3. आर्द्रता (Humidity) :

वाष्पीकरण की दर किसी निश्चित तापमान पर वास्तविक आर्द्रता एवं सापेक्षिक आर्द्रता के अन्तर का अनुपाती होता है। वास्तविक एवं सापेक्षिक आर्द्रता में जितना अधिक अन्तर मिलता है उतनी ही अधिक मात्रा में वाष्पीकरण भी होता है। शीत ऋतु में ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा आर्द्रता अन्तराल कम होता है अतः शीत ऋतु (ठंडे मौसम) में वाष्पीकरण कम होता है। वास्तविक एवं सापेक्षिक आर्द्रता से वाष्पीकरण की अधिकतम एवं न्युनतम दर का निर्धारण होता हैं। अधिक वास्तविक आर्द्रता अधिक वाषपीकरण (धनात्मक सहसम्बन्ध) एवं अधिक सापेक्षिक आर्द्रता न्यूनतम वाष्पीकरण (ऋणात्मक सहसम्बन्ध) की स्थिति स्थापित होती है। जैसे-जैसे वायु की आर्द्रता अधिक होती है उसमें नमी अवशोषण की क्षमता कम होती है अतः वाण्ीकरण एवं वाष्पोत्सर्जन की मात्रा एवं गति भी कम हो जाती है। शुष्क वायु में नमी अवशोषण की मात्रा क्षमता एवं गति अधिक होती है जिससे वाष्पीकरण वाष्पोत्सर्जन की मात्रा भी अधिक हो जाती है।

4. वायु (Wind) :

वायु एवं वाष्पीकरण वाष्पोत्सर्जन का घनिष्टठ सम्बन्ध है। वायु के माध्यम से जल परमाणुओं का वायुमण्डल में संचरण होता है। तापमान, वायु की शुष्कता, वायु की गति एवं वाष्पीकरण में सापेक्ष सम्बन्ध है। वायु के बढ़ते हुए तापमान से उसकी शुष्कता में वृद्धि होती है और जैसे ही वायु शुष्क होती है वैसे ही हल्की होकर वायुमण्डल की ओर उत्सर्जित होती है। परिणामर्वरूप उसकी औसत गति बढ़ जाती है जिससे वाष्पीकरण वाष्पोत्सर्जन की क्रिया में भी सम्बद्द्धन होता है। उच्च तापजनित शुष्क एवं गतिशील वायु में नमी धारण क्षमता बढ़ जाती है अतः उसे संतृष्ततावस्था में लाने के लिए तीव्र गति से वाष्पीकरण होता है। इसी प्रकार यदि जलीय तल के ऊपर स्थिर एवं ठन्डी वायु का आगमन हो तो नमी का स्थानान्तरण कम होने के कारण वायु संतृप्त हो जाती है और क्षीण वाष्पीकरण की स्थिति का जन्म होता है।

5. वायु दाब (Air Pressure):

वायुदाब, वाष्पन एवं वाष्पोत्सर्जन के बीच ऋणात्मक सहसम्बन्ध है। जब वायुमण्डलीय दाब कम होता है तो वाष्पीकरण अधिक होता है और वायुदाब के बढ़ने पर वाष्पीकरण की मात्रा में हास होता है। मेयर के अनुसार, वायुदाब का प्रभाव ऊँचाई परिवर्तन के साथ वाष्पदाब परिवर्तन के कारण बराबर हो जाता है। पहाड़ी क्षेत्रों में जहाँ निम्न ताप होता है वहाँ वाण्पीकरण वाष्पोत्सर्जन की क्रिया तीव्र होती है।

  • आकारजनक कारक (Morphological Factors):

स्वतन्त्र जलीय क्षेत्र में वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारकों के अन्तर्गत जल की आकारजनक स्थितियों यथा जल का गुण, जलीय भाग की गहराई, जलीय भाग का आकार एवं जलीय भाग की आकृति को सम्मिलित किया जाता है। वैसे तो जल की गुणात्मक स्थिति आकारजनक कारकों से भिन्न है किन्तु जलाकृतियों के क्षेत्रीय फैलाव एवं लम्बवत विस्तार के कारण जल के भौतिक एवं रसायनिक गुणों का भी निर्धारण होता है। अतः जल के आकारजनक कारकों के अन्तर्गत जल के भौतिक एव रसायनिक गुणों को भी सम्मिलित कर लिया गया है।

1. जल का गुण (Quality of Water) :

वाष्पीकरण की दर जल के भौतिक एवं रसायनिक गुणों के आधार पर सुनिश्चित होती है। जल में उपलब्ध लवणता प्रतिशत के अनुसार वाष्पीकरण प्रतिशत का निर्धारण होता है। यदि जल में एक प्रतिशत लवणता वृद्धि कर दी जाय तो वाणपीकरण में एक प्रतिशत की कमी आ जाती है। सागरीय जल की लवणता लगभग 3.5 प्रतिशत होती है, अतः शुद्ध जल की अपेक्षा सागरीय जल से वाष्पीकरण 2 से 3 प्रतिशत कम होता है। लवणता के बढ़ने से वाष्प दाब में कमी होती है परिणामस्वरूप वाष्पीकरण भी कम हो जाता है। जल का गंदलापन भी वाष्पीकरण की मात्रा को कम कर देता है।

2. जलीय भाग की गहराई (Depth of Water Bodies) :

जलीय भागों की गहराई पर तापमान के कालिक वितरण का प्रभाव पड़ता है तथा गहराई में परिवर्तन के साथ वाष्पीकरण की दैनिक, मासिक, ऋत्विक एवं वार्षिक मात्रा में भी अन्तर स्थापित हो जाता है। उथले जलीय भागों पर तापमान का कालिक वितरण अधिक प्रभावकारी होता है अर्थात् गर्मी के दिनों में वाष्पीकरण अधिक एवं जाड़े के दिनों में कम होता है। गहरे जलीय भाग देर में गर्म होते हैं अतः बाड़े के दिनों में वार्पीकरण की मात्रा गर्मी की अपेक्षा अधिक होती है।

3. जलीय भाग का आकार (Size of Water Bodics):

छोटे जलीय भागों में बड़े जलीय क्षेत्रों की अपेक्षा वाष्पन की दर अधिक होती है किन्तु आकार के छोटे होने के कारण कुल वाष्पीकरण की मात्रा बड़े जलीय भागों की अपेक्षा कम होती है। यदि जलीय भाग पर वायु स्थिर है तो वाष्पीकरण जलीय भाग के आकार एवं सापेक्षिक आर्द्रता पर निर्भर करता है किन्तु वायु संचरण के साथ जलीय विस्तार जितना ही अधिक होगा वाष्पीकृत जल की गहराई उतनी ही कम होगी क्योंकि विस्तृत जलीय क्षेत्र के ऊपर वायु में संचित वाष्प चादर की मोटाई बढ़ती जाती हैं एक लघु जलीय क्षेत्र के ऊपर उपलब्ध सापेक्षिक आर्द्रता की मात्रा जल परमाणुओं के वायु में संचरित हो जाने से बड़े भागों की तुलना में कम होती है।

4. जलीय भागों की आढृति (Shape of the Water Bodics) :

जलीय भागों की आकृतियाँ भी वाष्पीकरण को निश्चित करती है। सपाट जलीय भागों से होने वाला वाष्पीकरण अवतल जलीय भागों से होने वाले वाष्पीकरण से अधिक होता है। इसी प्रकार एक उत्तल जलीय भाग से होने वाला वाष्पीकरण सपाट जलीय भाग की अपेक्षा अधिक होता है।

 2. मिट्टी की सतह से होने वाले वाष्पीकरण को प्रभावित् करने वाले कारक (Factors Affecting Evaporation from Soil Surface) :

स्वतन्त्र जलीय क्षेत्र एवं मृदा सतह से होने वाले वाष्पीकरण को प्रायः एकही प्रकार के पर्यावरणीय कारक प्रभावित करते है किन्तु जल सतह एवं मृदा सतह की प्रकृति में अन्तर से वाष्पीकरण की मात्रा में अन्तर आ जाता है। मृदा सतह के वाष्पीकरण में जलीय सतह के वाष्पीकरण की अपेक्षा अधिक अवरोध उत्पन्न होता है। सामान्य रूप में मृदा सतह जनित वार्पीकरण को निम्नलिखित कारक निर्धारित करते हैं –

1. मृदा नमी (Soil Moisture):

मुदा नमी मृदा सतह से होने वाले वाष्पीकरण को सुनिश्चित करती है। मृदा का जल से संतृप्त होने की दशा में 100 प्रतिशत वाष्पीकरण की सम्भावना रहती है। जैसे-जैसे मृदा जल का ह्रास होने लगता है वाष्पीकरण कम होने लगता है। मृदा नमी की जितनी अधिक मात्रा मृदा सतह के करीब होती है वाष्पीकरण उतना ही अधिक होता है। मिट्टी के गुण, उसकी कोशिकीय विशेषता मृदा कर्णों की बनावट, मृदा जल की गहराई, मृदा पारगम्यता एवं सरन्ध्रता नमी धारण की मात्रा वाष्पीकरण को प्रभावित करती है।

2. मिट्टी की केशिकीय विशेषता (Soil Capillary Characteristics) :

कम वर्षा वाले क्षेत्रों में असंतृप्त मृदा में गहराई पर मौजूद नमी द्वारा वाष्पीकरण की प्रक्रिया मिट्टी की केशिकीय विशेषताओं पर निर्भर करता है। केशिकीय विशेषता के आधार पर मिट्टी में नमी का ऊपर उठना मिट्टी के कणों के आकार एवं बनावट से सम्बन्धित होता है। जिस मिट्टी में नमी अधिक ऊँचाई तक आ जाती है वहाँ वाष्पीकरण कम मात्रा में होता है। मिट्टी में रंधता की संख्या, आकार तथा लसलसाहट (Viscosity) भी मृदा केशिकीय गुणों को प्रभावित करती है।

3. जल स्तर की गहराई (Depth of Wate Label) :

धरातलीय सतह से मृदा संचित जल की गहराई जितनी अधिक बढ़ती जाती है वाष्पीकरण उतना ही कम होता जाता है किन्तु जब जल की गहराई 1 मीटर से अधिक हो जाती है तो वाष्पीकरण दर पर प्रभाव नगण्य होता है। इस स्थिति में वाष्पीकरण मिट्टी के केशिकीय विशेषताओं पर निर्भर हो जाता है। कीन (Keen) महोदय के अनुसार, जब धरातलीय सतह से जल स्तर की गहराई मोटे कणों वाली बलुई मिट्टी में 35 सेमी ० , महीन बलुई मिट्टी में नीचे 70 सेमी० तथा भारी दोमट मिट्टी में 85 सेमी० नीचे तक पहुँच जाती है तो केशिकीय विशेषता का प्रभाव भी वाष्पीकरण पर नगण्य होने लगता है।

4. मिट्टी का रंग (Soil Colour) :

वाष्पीकरण मिट्टी के रंग के आधार पर भी निश्चित होता है क्योंकि रंग के आधार पर मृदा ताप ग्रहण शक्ति में अन्तर स्थापित हो जाता है। अधिक ताप ग्रहण करने वाली मृदा सतह से वाष्पीकरण अधिक होता है।

5. प्राकृतिक वनस्पतियों की उपस्थिति (Presence of Natural Vegetation):

वनस्पतिविहीन मृदा आवरण से वाष्पीकरण की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है जबकि मृदा सतह पर वानस्पतिक आवरण से वाष्पीकरण कम हो जाता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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