विज्ञान के क्षेत्र में पुनर्जागरण (Renaissance in the Field of Science)
विज्ञान के क्षेत्र में पुनर्जागरण (Renaissance in the Field of Science)
मध्यकालीन यूरोप के जीवन पर धर्म और चर्च का जबरदस्त प्रभाव था और मानव-जीवन का मुख्य ध्येय परलोक को सुधारना था। इस दृष्टिकोण को अपनाकर चलने वाले लोगों की इस संसार की खोजबीन में अधिक रुचि नहीं थी। वे लोग पीढ़ियों से चले आ रहे ज्ञान-विज्ञान को ही प्रामाणिक मानते रहे। समय के साथ-साथ परम्परागत ज्ञान में अन्धविश्वासों तथा जादू-टोने का इतना अधिक मिश्रण हो गया था किं वास्तविक सत्य को पहचाना भी दुष्कर हो गया। इस प्रकार की स्थिति के लिए बहुत-कुछ अंशों में चर्च तथा धर्माधिकारी उत्तरदायी थे। धर्माधिकारी स्वतन्त्र चिन्तन के विरोधी थे और विज्ञान को एक प्रकार की नास्तिकता समझते थे। परन्तु पुनर्जागरण की भावना ने किसी भी सिद्धान्त को स्वीकार करने के पहले उसके विषय में निरीक्षण, अन्वेषण, जाँच और परीक्षण करने पर जोर दिया।
मध्ययुग में विज्ञान की प्रगति क्यों नहीं हो पाई ? इसके उत्तर में रोजन बेकन ने चार कारणों का उल्लेख किया है-(1) अज्ञानी लोगों की भीड़ का निश्चित मत, (2) प्रथा , जो नये विचारों के प्रति शंकालु होती है, (3 ) यह दिखाने की आदत कि हम सब कुछ जानते हैं और (4) दुर्बल तथा अयोग्य प्रमाण पर निर्भर रहना। ऐसी स्थिति में बैज्ञानिक बनना तथा नई खोजें करना बास्तव में जीवट का काम था। ऐसे ही लोगों में रोजन बेकन था। उसने एक साधारण सूक्ष्मदर्शी का निर्माण किया और धातुओं तथा रसायनों पर भी प्रयोग किये। उसने ऐसे बहुत से सिद्धातों का प्रतिपादन किया जिन पर चलते हुए बाद के वैज्ञानिकों ने शानदार सफलताएँ हासिल कीं।
दूसरी शताब्दी में मिस्त्र के यूनानी खगोलशास्त्री टॉलेमी ने यह मत प्रतिपादित किया था कि हमारी पृथ्वी ब्रह्माण्ड के बीचोंबीच स्थित है और यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का स्थिर केन्द्र है । सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र तथा अन्य ग्रह पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। चूँकि ईसाई चर्च ने भी इस सिद्धान्त को सत्य मान लिया था, अत: शताब्दियों तक यही पढ़ाया जाता रहा और लोगों ने भी इस पर विश्वास कर लिया था । परन्तु जब पोलैण्ड के बैज्ञानिक कोपन्निकस (1473-1543) ने टॉलेमी के सिद्धात को असत्य सिद्ध कर दिखाया तो लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ और वे सहसा इस पर विश्वास न कर सके। कोपनिकस ने बताया कि सूर्य हमारे इस ग्रहमण्डल की नाभि है और पृथ्वी सहित अन्य बहुत से ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं । कुछ लोगों ने इन विचारों की यह कहकर खिल्ली उड़ाई कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हैं तो फिर हम लोग लुढ़क क्यों नहीं जाते? पोप तथा चर्च ने कोपनिकस के इस नए सिंद्धान्त को बाइबिल और चर्च की शिक्षा के विरुद्ध मानकर इसे अस्वीकार कर दिया। पोप के आदेशों से कोर्र्निकस को अपने नये विचारों का प्रचार बन्द करना पडा। परन्तु इटली के एक अन्य वैज्ञानिक जाइडिनी ब्रूनों (1548-1600) ने कोपर्निकस के विचार का प्रचार किया और पोप के आदेश से उसे प्राण दण्ड की सजा मिली। धार्मिक अत्याचार के उपरान्त भी वैज्ञानिक प्रगति का मार्ग अवरुद्ध नहीं हुआ। बाद में जमंनी के वैज्ञानिक कैप्लर ने भी कोपर्निकस के विचारों की पुष्टि की। कैप्लर ने गति सम्बन्धी सिद्धान्तों का भी प्रतिपादन किया जो आगे चलकर आधुनिक गणित का आधारस्तम्भ बने।
इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक गैलीलियो (1564-1642) ने एक दूरदर्शी ( दूरबीन) बनाया जिसकी सहायता से पचास मील दूर के जहाजों को भी स्पष्टता के साथ देखा जा सकता था इस दूरदर्शी यन्त्र से ज्योतिष-शास्त्र के अध्ययन में बहुत सहायता मिली। गैलीलियो अपने युग का अत्यधिक लोकप्रिय वक्ता और लेखक भी था। उसने कोपर्निकस के सिद्धान्त को सही बताया। गैलीलियो ने यह सिद्ध किया कि गिरते हुए पिंडों की गति उनके भार पर नहीं अपितु दूरी पर निर्भर करती है, जहाँ से वे गिरते हैं। अर्थात् भारी और हल्की चीजें एक ही गति से धरती पर गिरती हैं। इससे अरस्तु का सिद्धान्त गलत प्रमाणित हो गया गैलीलियो ने पेंडुलम के जिन नियमों की खोज की थी उनके आधार पर आगे चलकर दीवार घड़ियों का बनाना सम्भव हो गया।
उपर्युक्त वैज्ञानिकों के सिद्धातों और नियमों पर काम करते हुए बाद के वैज्ञानिकों ने प्रकृति को समझने की दिशा में महत्त्वपूर्ण काम किया और यह काम 17वीं तथा 18वीं सदियों में भी जारी रहा। इस काल के वैज्ञानिकों में सर आइजक न्यूटन (1642-1727) का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। एक सामान्य परिवार में पैदा होने वाले न्यूटन ने गणित में इतनी अधिक कुशलता तथा योग्यता का परिचय दिया कि 27 वर्ष की अल्पायु में ही उसे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में गणित का प्रोफेसर नियुक्त कर दिया गया। भौतिक विज्ञान की सभी शाखाओं पर न्यूटन के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। न्यूटन का सर्वाधिक महान् और अत्यधिक प्रभावशाली योगदान ‘गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त’ हैं। जब वह युवा था तभी उसने यह जानकारी प्राप्त कर ली थी कि वह शक्ति जिसके द्वारा चन्द्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाता है और अन्य ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं, बही है जो छोड़ी गई वस्तुओं को नीचे गिराती है। परन्तु उसने अपनी यह जानकारी संसार को काफी देर बाद सन् 1687 ई. में अपनी पुस्तक ‘प्रिंसीपिआ’ (प्राकृतिक दर्शन के गणित सम्बन्धी सिद्धान्त) के माध्यम से दी। गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त ने सम्पूर्ण वैज्ञानिक जगत् में हलचल मचा दी। न्यूटन ने सिद्ध किया कि प्रत्येक वस्तु पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के कारण ऊपर से पृथ्वी की ओर खिंचती है। पृथ्वी अन्य सभी ग्रहों को भी अपनी ओर खींचे रहती है। इस सिद्धान्त का लोगों पर बड़ा भारी प्रभाव पड़ा। न्यूटन ने प्रकाश-किरणों के स्पेक्ट्रम के छह रंगों में बँट जाने का भी अध्ययन किया था।
रसायन शास्त्र के क्षेत्र में 1630 ई. में वॉल हेलमाट के कार्बन डाइऑक्साइड नामक गैस को बनाने की खोज की। उसने यह भी सिद्ध किया कि गैस और हवा अलग-अलग हैं। कोडेस नामक वैज्ञानिक ने गन्धक और अलकोहल को मिलाकर ईथर का निर्माण किया। राबर्ट ब्राइस नामक विद्वान् ने गैसों के विस्तार क्षेत्र में नये सिद्धान्त प्रतिपादित किये। चिकित्सा शास्त्र के क्षेत्र में भी काफी प्रगति हुई। 1543 ई. में नीदरलैण्ड के पेसेडियम ने मानव शरीर की बनावट’ नामक पुस्तक लिखी। उसने यह बताया कि मानव शरीर की बनावट को समझने के लिए केवल पुस्तकीय ज्ञान पर्याप्त नहीं होता। इसके लिए शल्य-चिकित्सा का व्यावहारिक ज्ञान अधिक लाभदायक एवं महत्त्वपूर्ण होता है। इंग्लैण्ड के विलियम हाव्वे ( 1579-1657) ने पता लगाया कि हृदय रक्त को धमनियों के द्वारा सारे शरीर में फेंकता है और शिराओं द्वारा वापस लेता रहता है। इस खोज के कारण ही रक्त चढ़ाने तथा हृदय और ग्रन्थियों के रोगों की चिकित्सा सम्भव हो पायी। इस प्रकार, इन वैज्ञानिकों ने अपनी खोजों के द्वारा मानव समाज के सामने एक नया मार्ग प्रशस्त किया।
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