टेबल टेनिस के नियम

टेबल टेनिस के नियम (Table Tennis)- रैकेट, गेंद, टेबल, सर्विस, प्वाइंट तथा मैच इत्यादि

टेबल टेनिस के नियम (Table Tennis)- रैकेट, गेंद, टेबल, सर्विस, प्वाइंट तथा मैच इत्यादि

टेबल टैनिस खेल का आरम्भ 19वीं शताब्दी के अन्त में इंग्लैण्ड देश से हुई। कहते हैं कि इसका नाम पहले ‘पिंग-पोंग’ हुआ करता था। कई स्थानों पर इसे ‘गोस्सीमा’ कह कर भी पुकारते थे। सन् 1922 में जब इस खेल की एसोसिएशन का गठन हुआ, तब से इसे ‘टेबल टैनिस’ का नाम दिया। इसी समय से इसके नियमों का भी मानवीकरण हुआ। यह एक इनडोर गेम है जो थोड़ी-सी ही जगह होने पर खेला जा सकता है। यह खेल चीन, जापान, इंडोनेशिया आदि देशों में पूरी तरह प्रचलित हुआ तथा उसके पश्चात् धीरे-धीरे विश्व के अन्य देशों में भी इसका प्रचलन हुआ। भारत में भी यह खेल काफी लोकप्रिय है तथा समय-समय पर इसके टूर्नामेन्ट होते हैं।

सन् 1966 में यूरोपीयन टेबल टैनिस की प्रतियोगिता का आयोजन हुआ जिसमें 33 देशों ने भाग लिया। इस प्रतियोगिता में पुरुष एवं महिलाओं, दोनों ने भाग लिया।

खेल

टेबल टैनिस का खेल पुरुष एवं महिलाएँ, दोनों में ही खेला जाता है। यह खेल एक छोटी रैंकेट एवं गेंद के साथ एक टेबल पर खेली जाती है। यह एक विशेष प्रकार का टेबल होता है जो आयताकार आकार का होता है। एक ओर से खिलाड़ी गेंद को रैकेट से हिट करता है तथा दूसरे खिलाड़ी की तरफ उछालता है। फिर दूसरा खिलाड़ी उसी प्रकार गेंद को रैकेट से हिट करता है तथा टेबल पर गेंद को टप्पा दे कर पहले खिलाड़ी की तरफ उछालता है। इसी प्रकार यह खेल चलता रहता है।

टेबल

टेबल का आकार आयताकार होता है तथा यह प्रायः मोटी लकड़ी की बनी हुई होती है। इस टेबल की लम्बाई 274 सेमी एवं चौड़ाई 152.5 सेमी की होती है। फर्श से इसकी ऊँचाई 76 सेमी होती है। एक सबसे महत्त्वपूर्ण बात इस टेबल की यह होती है कि इसका धरातल ऐसा होना चाहिए कि यदि गेंद को 30 सेमी की ऊँचाई से इस पर छोड़ा जाए तो टप्पा खाने के पश्चात् गेंद 22 सेमी से कम एवं 25 सेमी से अधिक ऊँची नहीं उछलनी चाहिए। यही धरातल ही क्रीड़ा क्षेत्र कहलाता है। प्रायः यह गहरे रंग का होता है तथा इसके किनारे सफेद रंग की रेखाओं से बनाए जाते हैं जो 2 सेमी चौड़ी होती हैं। डबल्स खेल के अन्तर्गत टेबल की सतह तीन सेमी चौड़ी सफेद रेखा द्वारा दो भागों में बाँटी जाती है। यह साइड रेखा के समानान्तर होती है तथा प्रत्येक से बराबर की दूरी पर होती है। इसे केन्द्र रेखा कहा जाता है ।

टेबल
टेबल

गेंद

टेबल टैनिस खेलने की गेंद गोलाकार होती है तथा यह सेल्यूलाइड अथवा प्लास्टिक की बनी होती है। इसका रंग सफेद अथवा हल्का पीला होता है। इसका वजन 2.5 ग्राम होता है और व्यास 38 मिमी होता है।

रैकेट

रैकेट लकड़ी का बना होता है तथा इसका तल प्राय: गहरे हरे रंग का होता है। यह किसी भी प्रकार के आकार अथवा भार का हो सकता है। इसके फलक पर रबड़ लगी होती है। जिसके दोनों तरफ अलग-अलग रंग होते हैं। नए नियमों के अनुसार इसके एक और गहरे काले और दूसरी तरफ गहरे लाल रंग की रबड़ लगी होती है। इन दोनों रंगों अथवा दोनों में से किसी एक रंग के न होने की वजह से कोई खिलाड़ी मैच नहीं खेल सकता। रबड़ की मोटाई दो मिमी० से अधिक नहीं होनी चाहिए। यह रबड़ प्रायः दानेदार होती है। रैकेट का हैंडल सामान्य लकड़ी का ही रहता है।

जाल

जाल टेबल के क्रीड़ा तल पर बीचो-बीच बाँधा जाता है। इसकी लम्बाई 183 सेमी होती है और क्रीड़ा तल से इसकी ऊँचाई 15-25 सेमी होती है। यह उचित खम्बों की मदद से टेबल पर बाँधा जाता है। यह दोनों तरफ की साइड रेखाओं से 15-25 सेमी बाहर की तरफ निकला हुआ होता है।

फर्श

टेबल टैनिस खेल में फर्श एक बहुत महत्त्वूर्ण भूमिका अदा करता है। खेल के दौरान दोनों खिलाड़ियों को अपनी कई मुद्राएँ बदलनी पड़ती हैं तथा पैर इधर-उधर घुमाने-फिराने होते हैं। अत: फर्श ऐसा होना चाहिए जिस पर किसी प्रकार की कठिनाई न हो अथवा फिसलने का खतरा न हो। वैसे तो लकड़ी के फर्श काफी अच्छे होते हैं जिन पर पैर अच्छी प्रकार टिकता है। चिकना एवं फिसलने वाला फर्श बहुत खराब होता है। यदि सीमेंट का फर्श भी हो तो वह खुरदुरा होना चाहिए जिससे खिलाड़ियों को पैर रखने में कोई कठिनाई न हो तथा पैरों से फर्श का अच्छा तालमेल बना रहे।

प्रकाश की व्यवस्था

टेबल टैनिस क्योंकि एक इनडोर खेल है अत: इसके लिए प्रकाश की उचित व्यवस्था का प्रबन्ध करना अति आवश्यक है। प्रकाश की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि क्रीड़ा क्षेत्र के प्रत्येक स्थान पर उचित प्रकाश मिलता रहे । ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि प्रकाश चमकदार हो जो ऑँखों में पड़े अथवा फिर इतना हल्का भी नहीं होना चाहिए जिसके लिए ऑँखों से काफी जोर लगाना पड़े। पर्याप्त प्रकाश के लिए वैसे 10 से 12 लैम्प तक ठीक रहते हैं । प्रत्येक लैम्प में 150 से 200 वाट तक के बल्ब लगाए जा सकते हैं। आजकल ‘आयोडीन’ लैम्पों का प्रचलन काफी मात्रा में हो रहा है। इन्हें काफी ऊँचाई पर लटकाया है और उचित रोशनी प्राप्त की जा सकती है।

सर्विस

इस खेल में सर्विस का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है । इसमें खिलाड़ी गेंद को अपने खुले हुए हाथ की हथेली पर रखता है। हाथ की अँगुलियाँ जुड़ी रहती हैं और अँगूठा युक्त रहता है। खिलाड़ी गेंद को हवा में उछालता है तथा उसके नीचे गिरने पर रैकेट से उसे मारता है। पहले गेंद सर्विस देने वाले खिलाड़ी के कोर्ट में टप्पा खा कर जाल को पार करेगी और दूसरे खिलाड़ी के कोर्ट में प्रवेश करती है। फिर दूसरा खिलाड़ी अपने रैकेट से गैंद को मार कर वापस पहले खिलाड़ी की तरफ फैंकता है। एक अच्छे खिलाड़ी को चाहिए कि वह ऐसी सर्विस दे कि गेंद टेबल के दोनों अर्द्ध भागों के अलावा किसी भी स्थान को न छुए।

लेट

कई बार खिलाड़ी द्वारा सर्विस किए जाने पर गेंद जाल को छू जाती है, लेकिन बाकी तरीके से वह ठीक होती है तो अम्पायर ‘लेट’ कह कर खेल रोक देता है। इसके पश्चात् सर्विस दोबारा से की जाती है।

सर्विस युगल खेल में

युगल खेल के अन्तर्गत सर्विस कोर्ट के एक तरफ के दाहिने छोर के अर्द्धभाग से दूसरे छोर के दाहिने भाग को स्पर्श करना आवश्यक होता है। कई बार गेंद मध्य रेखा पर टप्पा खाती है, फिर भी इसे ठीक से सर्विस माना जाएगा। युगल खेल के अन्तर्गत सर्विस का क्रम निम्न प्रकार रहता है-

  • माना कि एक तरफ के दो खिलाड़ी हैं-विवेक और कौशल
  • दूसरी तरफ के दो खिलाड़ी हैं-महेन्द्र और नरेनद्र
  • पहले पाँच पाइंटों के लिए विवेक महेन्द्र को सर्विस करेगा।
  • दूसरे पाँच पाइंटों के लिए महेन्द्र कौशल को सर्विस करेगा।
  • तीसरे पाँच पाइंटों के लिए कौशल नरेन्द्र को सर्विस करेगा ।
  • चौथे पाँच पाइंटों के लिए नरेन्द्र विवेक को सर्विस करेगा ।
  • पाँचवे पाइंटों के लिए विवेक फिर से महेन्द्र को सर्विस करेगा ।

ऐसा क्रम तब तक चलता रहता है जब तक कोई टीम खेल जीत न ले। खेल उसी खिलाड़ी अथवा टीम द्वारा जीता जाता है जो पहले 21 पाइंट बना लेता है। यदि किसी खिलाड़ी को अपने विरोधी खिलाड़ी की सर्विस से कोई परेशानी है तो वह अम्पायर से कह कर उसे ठीक करवा सकता है।

गेंद की वापसी

एक अच्छी सर्विस देने के पश्चात् दूसरी टीम का खिलाड़ी गेंद को खेल कर उसे वापिस पहले खिलाड़ी की तरफ लौटाता है। यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक कोई खिलाड़ी इसे लौटाने में असफल हो जाता है तथा वह पाइंट खो देता है। गेंद को किस हद तक ऊँचाई तक उछाला जाए, इस विषय पर कोई सीमा नहीं है। कई बार तो टेबल के ऊपर लगे लैम्पों तथा तारों तक गेंद उछल जाती है। यदि गेंद इन्हें छुए बिना अर्द्धभाग में गिरती है तो सही मानी जाती है, लेकिन यदि इन्हें छू कर गिरती है तो ‘डेड’ या ‘मृत’ मानी जाती है। जिस खिलाड़ी ने उसे लौटाया है, वह पाइंट खो देता है। कई बार सर्विस करने के बाद गेंद बिना टप्पा खाए दूसरे खिलाड़ी के रैकेट को छू जाती है तो इसे ‘टेकन’ कहा जाता है। ऐसी स्थिति में पांइट सर्विस करने वाले को दिया जाता है।

पाइंट

एक खिलाड़ी निम्न स्थितियों में पाइंट खो देता है-

(1) गेंद रैकेट अथवा फलक के किसी साईड वाले भाग को छू लेती है।

(2) गेंद खेल में होती है तथा खिलाड़ी का मुक्त हाथ खेल तल को छू लेता हो ।

(3) खिलाड़ी सर्विस करने में असफल रहता है।

(4) खिलाड़ी गेंद को वापिस लौटाने में असफल रहता

(5) खिलाड़ी गेंद को बिना टप्पा खिलाए वापिस भेज देता है।

(6) खिलाड़ी गेंद को दो बार मार देता है।

(7) गेंद खिलाड़ी के कोर्ट में दो बार टप्पा खाती है।

पोशाक

टेबल टैनिस खेलने के लिए नियमानुसार छोटी बाजू वाली कमीज, नेकर अथवा स्कर्ट एवं स्पोर्ट्स शूज के साथ जुराबें पहनना अनिवार्य होता है। निर्णायक की अनुमति ले कर ट्रैक सूट पहन कर खेला जा सकता है। नेकर अथवा स्कर्ट एवं कमीज एक ही रंग के होते हैं-केवल सफेद रंग को छोड़ कर । कपड़ों पर किसी भी कम्पनी अथवा एसोसिएशन का चिन्ह छापा जा सकता है जिसकी आकृति 16 वर्ग सेमी से अधिक नहीं होनी चाहिए। सर्दियों के दिनों में कमीज के रंग का ही स्वेटर अथवा कार्डिगन पहन कर खेला जा सकता है।

दिशा एवं सर्विस का चुनाव

खेल प्रारम्भ होने से पहले दोनों टीमों का टॉस होता है। टॉस जीतने वाला अपनी दिशा चुनता है एवं सर्विस का अधिकार लेता है। यदि वह चाहे तो विपक्षी टीम अथवा खिलाड़ी का भी दिशा चुनने का अधिकार दे सकता है। युगल खेल में जिस टीम को सर्विस का अधिकार होता है वह यह तय करते हैं कि कौन-सा खिलाड़ी पहले पाँच सर्विस करेगा ।

दिशा परिवर्तन तथा सर्विस

खेल में एक दिशा की तरफ से खेलने वाले खिलाड़ी दूसरे खेल में दूसरी इशी से खेल का आरम्भ करेंगे अर्थात दोनों तरफ के खिलाड़ियों की दिशा आपस में बदल दी जाती है। बुसे के अन्तिम क्षणों में जो खिलाड़ी अथवा टीम पहले 10 पाइंट बना लेते हैं, वे दिशा परिवर्तन कर सकते एकल खेल के अन्तर्गत 5 पाईंट होने पर गेंद प्राप्त करने वाला खिलाड़ी, सर्विस करने वाला बन जाएगा।

क्रमहीनता

एक खिलाड़ी यदि अपना समय आने पर दिशा नहीं बदलता, जबकि नियमानुसार उसे ऐसा करना चाहिए, उसी समय अम्पायर के द्वारा खेल रोक दिया जाता है।

इस गलती का पता चलते ही दोनों की दिशाएँ बदल दी जाती हैं और खेल पुन: प्रारम्भ करवाया जाता है। किसी भी गलती के ज्ञात होने से पहले बने पाइंटों को वैध माना जाता है।

मैच

टेबल टैनिस का खेल प्रायः एक, तीन अथवा पाँच गेमों का होता है। इसका आशय है कि प्रत्येक खिलाड़ी अथवा टीम को क्रमशः एक, दो अथवा तीन गेम जीतने आवश्यक होते हैं। खेल निरन्तर जारी रहता है। केवल पाँच गेमों वाले मैच में तीसरे एवं चौथे खेल के बीच में थोड़ा आराम ले सकता है लेकिन वह भी पाँच मिनट से अधिक नहीं। उतरवरत खेल में विश्राम एक मिनट से अधिक के समय का नहीं दिया जाता।

अधिकार क्षेत्र तथा मैच अधिकारी

जो भी संस्था टेबल टैनिस की प्रतियोगिता करा रही होती है वह मैच के संचालन में अपना एक उत्तरदायी निर्णायक नियुक्त करती है। वह निर्णायक आगे के संचालन के लिए आवश्यकतानुसार अम्पायर, सहायक-अम्पायर, की नियुक्ति करता है। निर्णायक ही मैचों का समय, एवं इनाम का संचालन करता है। किसी भी प्रकार के नियम का उल्लंघन होने पर अनुशासित कार्यवाही करवाना उसका फर्ज है ।

प्रतियोगिता की किस्में

(1) विश्व चैम्पियनशिप

(2) अन्तर्राष्ट्रीय मैच

(3) महाद्वीप चैम्पियनशिप

(4) अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता

(5) ओपन टूर्नामेण्ट

(6) स्कूल नेशनल क्रीड़ा स्पर्धा

महत्त्वपूर्ण कप

(1) बारना बेलेक कप

(2) जयलक्ष्मी कप

(3) स्वेथलिंग कप

(4) कारबीमान कप

अर्जुन पुरस्कार विजेता

(1) 1982 वी० चन्द्रशेखर

(2) 1987 मोना लिजा बरुआ

(3) 1990 मनजीत सिंह चालिया

(4) 1999 सुब्रामनियम रामन

महत्वपूर्ण लिंक 

Disclaimersarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है | हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है| यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *