भूगोल में पुनर्जागरण- भौगोलिक अनुसंधान (Geographical Research)
भूगोल में पुनर्जागरण- भौगोलिक अनुसंधान (Geographical Research)
पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप यूरोपवासियों में भूगोल के प्रति अभिरुचि का विकास हुआ जिससे भौगोलिक अनुसंधान को प्रोत्साहन मिला। कुछ ईसाई धर्म प्रचारक नये-नये देशों में जाकर महात्मा ईसा की शिक्षाओं का प्रसार करने की जिज्ञासा रखते थे तो व्यापारिक वर्ग पूर्वी देशों का सीधा जलमार्ग खोज निकालने को उत्सुक था। क्योंकि यूरोप में नये नगरों के उदय के परिणामस्वरूप पूर्वी देशों से आने वाले मसालों, रेशम, रत्नों औषधियों, सुगन्धित पदार्थों आदि की माँग बढ़ती जा रही थी और स्थल मार्ग पर तुर्कों का नियन्त्रण हो जाने के कारण जो थोड़ा-बहुत व्यापार भूमध्य सागर के मार्ग से होता था उस पर इटली के नगरों ने एकाधिकार जमा रखा था।
पुनर्जागरण काल में उपलब्ध नई जानकारी से नौका-नायकों की स्थिति भी अब काफी सुधर गई थी। अब वे लोग पहले की भाँति यह विश्वास नहीं करते थे कि समुद्री दानव जहाजों को निगल जायेंगे अथवा यह कि उष्ण कटिबन्धी समुद्रों का पानी उबलता रहता है। अब उन्हें इस बात का भय नहीं रह गया था कि यदि वे समुद्र में बहुत दुर निकल गये तो पृथ्वी के किनारे से गिर जायेंगे। अब उनका साहस बढ़ा हुआ था उनके जहाज भी बड़े-बड़े थे। मानचित्रों में भी काफी सुधार हो गया था । नौ-चालन उपकरण भी सुधर गये और उनके पास अच्छा दिशा सूचक यन्त्र (कुतुबनुमा) और एक सुधरा हुआ ऐस्ट्रोलेब (वह उपकरण जिससे अक्षांश जाना जाता है) था।
मार्कोपोलो- तेरहवीं सदी के अन्त में मंगोल नेता कुबलाई खाँ ने चीन में एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया था। इटली के बहुत से व्यापारी चीन के साथ व्यापार करने के इच्छुक थे वेनिस के मार्कोपोलो को इसी उद्देश्य से चीन जाना पड़ा। कुबलाई खाँ के दरबार में उसे उचित सम्मान मिला और वह कई वर्ष तक उसके पास रहा। वेनिस लौटने पर उसने यात्रा-वृत्तान्त को प्रकाशित करवाया जिसमें पूर्वी देशों के महान् वैभव का विस्तृत वर्णन किया। पूर्वी देशों में मिलने वाले कपास, चीनी, मसालों, सोना और रत्न आदि के विवरण ने यूरोपवासियों को आकर्षित किया और वे पूर्वी देशों के साथ सीधा सम्पर्क स्थापित करने की बात सोचने लगे। इससे भौगोलिक अनुसन्धान को प्रोत्साहन मिला।
पुर्तगालियों की खोजें- अपनी अनुकूल भौगोलिक स्थिति के कारण पुर्तगाल जैसे छोटे से देश ने भौगोलिक अनुसन्धान में अन्य देशों का मार्ग प्रशस्त किया। वहाँ के राजकुमार हेनरी ने प्रारम्भिक खोज-यात्राओं को प्रोत्साहित किया। उसने समुद्रो नाविकों के लिए विद्यालय कायम किया और फिर प्रशिक्षित नाबिकों को अटलांटिक महासागर में अजोर्स तथा मडोरा द्वीपों की ओर अफ्रीका के पश्चिमी समुद्री तट की खोज करने को भेजा था । उन लोगों ने अफ्रीका का गाइना तट खोज निकाला। इसके बाद बार्थों लोम्यूडाइज ने केप कोलोनी (उत्तमांशा अंतरीप) तक का चक्कर लगाकर भारत पहुँचने का मार्ग खोजने का अथक प्रयास किया परन्तु उसे सफलता नहीं मिली।
भौगोलिक अनुसंधान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त करने का श्रेय वास्को-डी-गामा को है। 1497 ई. में वह अपने साथियों सहित पूर्वी द्वीप समूह की खोज के लिए निकल पड़ा। केप-कोलोनी पहुँचने के बाद वह जंजीबार की तरफ मुड गया। संयोगवश यहाँ उसे एक अरब नाविक की सहायता मिल गई जो उसे 1498 ई. में सीधा भारत के विख्यात बन्दरगाह कालीकट तक ले आया। वास्को-डी-गामा एक विजेता की भाँति घर लौटा। वह अपने अभियान खर्च से आठ गुनी अधिक कीमत का सामान लेकर लौटा था।
स्पेनियों की खोजें- पूर्वी देशों के लिए जलमार्ग खोजने में स्पेन के नाविकों ने भी गहरी रुचि ली और अनजाने में ही नई दुनिया (अमेरिका) को खोज निकाला। इसका श्रेय क्रिस्टोफर कोलम्बस को है। वह जिनोआ का नागरिक था। कुछ दिनों तक पुर्तगाल में रहा और बाद में स्पेन चला गया। मार्कोपोलो के यात्रा वृत्तान्त से प्रेरित होकर उसने भारत का जलमार्ग खोजने का निश्चय किया। उसका विचार था कि भारत पहुँचने के लिए पश्चिम की ओर से समुद्र के आर-पार यात्रा करनी चाहिए। अन्त में, स्पेन की रानी आइसबेला ने उसे आर्थिक सहयोग देकर नया मार्ग खोजने की प्रेरणा दी। 3 अगस्त, 1492 ई. के दिन कोलम्बस ने अपनी महान् यात्रा के लिए प्रस्थान किया। कैनेरी द्वीप पहुँचने के बाद वह पश्चिम दिशा की ओर बढ़ता ही चला गया| पाँच सप्ताह तक धरतीं के दर्शन नहीं हुए। 6 अक्टूबर को दूर क्षितिज पर पक्षी उड़ते दिखाई दिये और पाँच दिन बाद कोलम्बस ने अमेरिका की धरती पर पहला कदम ‘बहामा समूह’ पर रखा। इसके बाद कुछ दिन उसने क्यूबा, हेट्टी आदि स्थानों की खोज में बिताये कोलम्बस अपनी इस खोज की महानता को नहीं जान पाया क्योंकि उसने सोचा था कि वह एशिया के दक्षिण-पूर्व में स्थित भारत (इंडीज) द्वीप समूह में पहुँच गया है। इसलिए उसने वहाँ के मूल निवासियों को ‘इंडियन’ कहा। स्पेन लौटने पर उसका शानदार स्वागत किया गया। 1493 ई. में कोलम्बस पुन: अमेरिका गया। परन्तु वह अपनी इस महान् खोज से स्पेन का राजकोष न भर सका। दुःख और क्षोभ में 1506 ई. में इस महान् नाविक की मृत्यु हो गई। उसकी खोज का महत्त्व उसकी मृत्यु के बाद ही स्पष्ट हो पाया और तभी लोगों को शेष आधी दुनिया की जानकारी मिल पाई। कोलम्बस की साहसिक यात्रा से अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिली और वे नई दुनिया के अन्वेषण में लग गये। अमेरिगो वेस्पूची नामक एक इटालियन ने कोलम्बस के काम को आगे बढ़ाया और यह सिंद्ध क्रिया कि नई दुनिया एशिया का भाग न होकर एक नई दुनिया है। इसी कारण से बाद के लोगों ने इस नई दुनिया का नाम उसके सम्मान में ‘अमेरिका’ रखा। उसके बाद वास्को नूनेज डि बालबोआ नामक साहसिक व्यक्ति सोने की खोज में नई दुनिया के जंगलों और पहाड़ों में भटकता रहा और पनामा के आसपास घूमकर दक्षिण सागर का पता लगाया। बाद के अन्वेषकों में पोथे दा लेआन ने फ्लोरिंडा की खोज की। हरनांडो कोर्टेज ने मैक्सिको का पता लगाया।
अंग्रेजों और फ्रांसीसियों की खोजें- प्रारम्भ में अंग्रेज नाविक नई दुनिया से स्पेन आने वाले जहाजों को लूटकर धन अर्जित करने में लगे रहे। इन साहसिक अंग्रेज नाविकों को लोग ‘समुद्री कुत्ते’ (Sea dogs) के नाम से पुकारने लगे थे। इनमें ड्रेक, हाकिन्स, रेले आदि मुख्य थे। इन लोगों के पूर्व इंग्लैण्ड के शासन हेनरी सप्तम ने जॉन कैबट को चीन और भारत का जलमार्ग खोजने के लिए भेजा था परन्तु कैबट पूर्वी-उत्तरी अमेरिका के तट पर जा पहुँचा और उसने इस द्वीप को ‘न्यू फाउंडलैंड’ नाम प्रदान किया। बाद में, कुछ अन्य अंग्रेजी नाविकों ने भी उत्तर – पश्चिमी जलमार्ग खोजने का प्रयास किया परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। फ्रांसीसी भी एशिया के लिए पश्चिमी मार्ग खोज़ने में रुचि रखते थे। 1524 ईं. में फ्रांस के राजा ने बेरात्सानी नामक नाविक को इस काम पर गेजा। परन्तु वह भी नई दुनिया पहुँच गया और उसने नार्श कैरोलिना से लेकर न्यूबार्क तक के क्षेत्र की खोजीन की।
भौगोलिक अनुसंधान का काम धीरे-शीरे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बन गया। इसके महत्वपूर्ण परिणाम निकले। एक तरफ तो ब्यापार-वाणिज्य का विकास हुआ और दूसरी तरप्ट उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का प्रसार हुआ जिसके कारण यूरोपीय देशों में आपसी झगड़ों का सूत्रपात हुआ। अब बड़ी नौसेना रखना आवश्यक हो गया। दूसरा परिणाम विज्ञान का विकास है। वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ भौगोलिक अनुसंधान का क्षेत्र भी बढ़ता चला गया। तीसरा; अमेरिका, अफ्रीका तथा आस्ट्रेलिया में यूरोपवासियों ने वहाँ के मूल निवासियों पर बर्बर अत्यानचार किये। उन लोगों की मूल सभ्यताओं को नष्ट कर दिया और ईसाई धर्म तथा पश्चिमी संध्यता एवं संस्कृति का प्रसार किया गया| वस्तुत: भौगोलिक अनुसंधानों ने यूरोप को दो सदियों तक सम्पूर्ण विश्व का भाग्य विद्यता बना दिया।
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