मिट्टियों का वर्गीकरण, वितरण एवं विशेषताएँ (Classification, distribution and characteristics of soils)
मिट्टियों का वर्गीकरण, वितरण एवं विशेषताएँ (Classification, distribution and characteristics of soils)
संसार में मिट्टियों का विस्तार कटिबन्धों (Zones) में पाया जाता है। ये कटिबन्ध अक्षांशीय क्षेत्रों में विस्तृत हैं। इसी कारण इन्हें कटिबन्धीय मिट्टी (Zonal Soils) कहा जाता है। कुछ मिट्टियाँ ऐसी भी हैं जो उपर्युक्त वर्ग में नहीं आतीं। ऐसी मिट्टियों को क्षेत्रीय मिट्टी (Regional Soils) कहते हैं। विश्व में पायी जाने वाली मुख्य मिट्टियों का विवरण निम्नलिखित है।
मिट्टियों का वर्गीकरण, वितरण एवं विशेषताएँ
- पोडजोल मिट्टियाँ
- धूसर-बादामी मिट्टियाँ
- टुण्ड्रा प्रदेश की मिट्टियाँ
- पैडोकल मिट्टियाँ
- लाल और पीली मिट्टियाँ
- मरुस्थलीय मिट्टियाँ
- पर्वतीय मिट्टियाँ
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पोडजोल मिट्टियाँ
मिट्टियाँ अपने विशिष्ट पर्यावरण की देन होती हैं। पोडजोल मिट्टियाँ शीतलाद्द्र जलवायु वाले उच्च अक्षांशीय वन प्रदेशों में पायी जाती हैं। इस मिट्टी में ‘ह्यूमस’ की बहुतायत होती है। मिट्टी की ऊपरी परत भूरी या कत्थई रंग की होती है। ये मिट्टियाँ उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के कोणधारी वनों में भली प्रकार विकसित हुई हैं। ये मिट्टियाँ अनुपजाऊ होती हैं। इन मिट्टियों की अम्लता को कम करने के लिए चूना और उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार ये मिट्टियाँ कृषि की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नहीं हैं।
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धूसर-बादामी मिट्टियाँ
ये मिट्टियाँ मध्य अक्षांशों के पतझड़ वाले वनों में महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर पायी जाती हैं। इन वनों में पेड़ों की सूखी पत्तियों और पौधों के अन्य अवशेष मिट्टी में मिलकर ह्युूमस की मात्रा बढ़ा देते हैं जो पोडजोल मिट्टियों में नहीं पाया जाता। इन मिट्टियों में से खनिजों और जैव पदार्थों का नीचे को रिसाव (Leaching) भी कम होता है। अत: ये कृषि की दृष्टि से अपेक्षाकृत अधिक उपयुक्त हैं। पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भाग में इन मिट्टियों में मिश्रित खेती और पशुपालन व्यवसाय किया जाता है। पूर्वी एशिया में मंचूरिया, कोरिया और जापान में भी इन मिट्टियों का विस्तार पाया जाता है।
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टुण्ड्रा प्रदेश की मिट्टियाँ
टुण्ड्रा प्रदेश की मिट्टियाँ भली प्रकार विकसित नहीं हैं, क्योंकि वर्ष के अधिकांश समय यहाँ मिट्टी में शीतल जल भरा रहता है। निम्न ताप के कारण इन मिट्टियों में रासायनिक और जैविक परिवर्तन भी मन्द गति से होते हैं। इनमें बलुई-चीका के साथ-साथ पीट और कच्चा जैव पदार्थ भी मिलता है। कुछ नदी घाटियों में; जैसे अलास्का में यूकन नदी की घाटी में आर्कटिक भूरी मिट्टी पायी जाती है। ये अपेक्षाकृत अधिक परिपक्व मिट्टियाँ हैं। टुण्ड्रा प्रदेश की मिट्टियों में जल-निकास की अच्छी व्यवस्था न होने पर इन्हें अन्तःस्तरी (Intrazonal) मिट्टियाँ कहते हैं। इनका विस्तार केवल उत्तरी गोलार्द्ध में टुण्ड्रा जलवायु के क्षेत्रों में उत्तरी अमेरिका और उत्तरी यूरेशिया महाद्वीपों में पाया जाता है।
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पैडोकल मिट्टियाँ
शीतोष्ण जलवायु वाले प्रदेशों में विशेषतः मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में इन मिट्टियों का विस्तार मिलता है। इनमें घास के बार-बार सड़ने से जीवांशों एवं नाइट्रोजन का आधिक्य हो जाता है। जिससे उनकी उर्वरा शक्ति में वृद्धि हो जाती है। वर्षा कम होने पर भी इन मिट्टियों में नमी की मात्रा सुरक्षित रहती है। इनमें कैल्सियम और खनिज लवणों की मात्रा अधिक होती है। इनकी जलधारण शक्ति अधिक होने के कारण इनमें सिंचाई की भी अपेक्षाकृत कम आवश्यकता पड़ती है। इन मिट्टियों में चरनोजम, जो रूस में पायी जाती है, सर्वाधिक उपजाक मिट्टी है। संसार के प्रेयरी और स्टेप्स प्रदेशों में इन्हीं मिट्टियों का वितरण पाया जाता है। इनमें गेहूँ और कपास की फसलें अधिक उत्पन्न की जाती हैं।
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लाल और पीली मिट्टियाँ
इन मिट्टियों का विस्तार उष्ण एवं आर्द्र जलवायु के भागों में मिलता है। ग्रीष्मकाल की लम्बी अवधि के बाद अधिक वर्षा होने के कारण इनके द्वारा जल अधिक सोख लिया जाता है। इन मिट्टियों में खनिज पदार्थ बहुत ही कम मात्रा में पाये जाते हैं, क्योंकि घुलनशील खनिजों का नीचे की ओर रिसाब हो जाता है। इनकी ऊपरी सतह भुरभुरी, चीका एवं दोमट मिट्टी के कणों से मिश्रित रहती है। ये मिट्टियाँ अनुपजाऊ होती हैं, क्योंकि इसमें कैल्सयम व ह्युमस की नितान्त कमी होती है। सामान्यत: ये मिट्रियाँ अम्लीय होती हैं। उच्च उष्णर्द्ध पर्वतीय भागों की लेटराइट मिट्टियाँ भी इसी प्रकार की होती हैं। इन मिट्टियाँ में पाये जाने वाले लोहांश की मात्रा पर ऑक्सीकरण का प्रभाव कम पड़ने के कारण इन मिट्टियों का रंग अधिक पीला हो जाता है। दक्षिण-पूर्वी एशिया, संयुक्त राज्य अमेरिका का दक्षिणी भाग, अमेजन ब कांगों नदियों के बेसिन, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया तथा पूर्वी अफ्रीका के पठार पर इन मिट्टियों का आधिक्य पाया जाता है।
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मरुस्थलीय मिट्टियाँ
जिस मिट्टी में बालू के मोटे कण होते हैं, उसे मरुस्थलीय मिट्टी कहते हैं। ये मिट्टियाँ क्षारीय होती हैं और उनमें वनस्पति की कमी के कारण ह्यूमस का भी अभाव पाया जाता है। इस मिट्टी में जल को संचय करने की क्षमता नहीं होती। इसमें जो नमी होती है, वह भी वाष्प बनकर निकल जाती है। मरुस्थलीय मिट्टियों में नाइट्रोजन की कमी होती है, परन्तु खनिज पदार्थों के आधिक्य के कारण ये उपजाऊ होती हैं। जल के अभाव के कारण इनमें कृषि-कार्य नहीं होता; किन्तु जहाँ जल की उपलब्धता होती है वहाँ कृषि-कार्य किये जाते हैं। इन मिट्टियों का वितरण संसार के शीत एवं उष्ण मरुस्थलों में पाया जाता है। सहारा, थार, कालाहारी, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, चिली, गोबी और रूसी तुर्किस्तान क्रे मरुस्थलों में इन्हीं मिट्टियों का फैलाव है।
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पर्वतीय मिट्टियाँ
ये मिट्टियाँ पर्वतों के ढालों पर संसार के सभी भागों में पायी जाती हैं। इसलिए इन्हें ढाल मिट्टियाँ भी कहते हैं। इन मिट्टियों में कंकंड़-पत्थर भी पाये जाते हैं और ढालों पर इनकी पतली परत पायी जाती है। पर्वतीय घाटियों में जलोढ़ मिट्टी के जमाव भी पाये जाते हैं। पर्वतीय ढालों की मिट्टियाँ फलों और बागानी फसलों; जैसे-चाय, कहवा आदि के लिए अधिक लाभदायक होती हैं।
निरन्तर व प्रतिदिन परिवर्तनशील रहता है। इन बदलती हुई मौसम की अवस्थाओं की औसत दशा को जलवायु के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है। वर्ष भर के मौसम की अलग-अलग अवस्थाओ के औसत निकालने और वर्षों के औसत से जलवायु का पता चलता है। एक लम्बे समय तक मौसम के तत्वों का अध्ययन जलवायु के अन्तर्गत किया जाता है। मोंकहाउस ने भी मौसम और जलवायु के अन्तर को इन शब्दों में व्यक्त किया है, “जलवायु में मौसम की अवस्थाओं का औसत वर्णन विस्तृत क्षेत्र एवं लम्बे समय तक किया जाता है।”
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