हिन्दी / Hindi

नाटक- परिभाषा, प्रथम नाटक, नाटक के तत्त्व, प्रमुख नाटककारों के नाम, प्रसिद्ध नाटकों के नाम

Table of Contents

नाटक- परिभाषा, प्रथम नाटक, नाटक के तत्त्व, प्रमुख नाटककारों के नाम, प्रसिद्ध नाटकों के नाम

परिभाषा-

अभिनय की दृष्टि से संवादों एवं दृश्यों पर आधारित विभिन्न पात्रों द्वारा रंगर्मच पर प्रस्तुत करने के लिए लिखी गई साहित्यिक रचना ‘नाटक’ कहलाती है।

हिन्दी के प्रथम नाटक एवं उसके रचयिता का नाम-

हिन्दी का प्रथम नाटक गोपालचन्द्र गिरिधरदास द्वारा रचित ‘नहुष’ माना जाता है।

पाश्चात्य विद्वानों ने नाटक के तत्त्व हैं-

पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार नाटक के निम्नलिखित छह तत्त्व हैं- (1) कथावस्तु, (2) चरित्र- चित्रण, (3) कथोपकथन, (4) देश-काल एवं वातावरण, (5) भाषा-शैली, (6 ) उद्देश्य।

भारतीय आचार्यों द्वारा नाटक के तत्त्व हैं-

भारतीय आचार्यों द्वारा निम्नलिखित पाँच तत्त्व बताए गए हैं- (1) कथावस्तु, (2 ) नायक, (3 ) रस, (4) अभिनय, (5) वृत्ति।

हिन्दी नाटक के विकास को विभाजित किया जा सकता है-

हिन्दी नाटक के विकास को निम्नांकित पाँच भागों में विभक्त किया जा सकता है-

(1) पूर्व भारतेन्दुकाल – सन् 1643 ई० से, 1866 ई० तक।

(2) भारतेन्दुकाल – सन् 1867 ई० से 1904 ई० तक।

(3) उत्तर भारतेन्दुकाल – सन् 1905 ई० से 1915 ई० तक।

(4) प्रसादकाल – सन् 1915 ई० से 1920 ई० तक।

(5) आधुनिककाल – सन् 1920 ई० से बर्तमान समय तक।

नाटक श्रव्य-काव्य’ अथवा ‘दृश्य-काव्य-

नाटक को रंगमच पर अभिनय के द्वारा प्रस्तुत करने के उद्देश्य से ही लिखा जाता है। इस दृष्टि से नाटक एक ‘दृश्य-काव्य’ है।

‘नाटक को ‘रूपक’ क्यों कहा गया है-

नाटक के पात्र किसी दूसरे व्यक्ति या चरित्र का रूप धारण करके अभिनय करते हैं। नाटक के पात्रों पर रूप के इस आरोप के कारण ही ‘नाटक’ को ‘रूपक कहा जाता है।

प्रमुख रेडियो रूपककारों के नाम-

हिन्दी के प्रमुख रेडियो रूपककारों में सुमित्रानन्दन पन्त, उदयशंकर भट्ट, विष्णु प्रभाकर, अमृतलाल नागर तथा उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ आदि उल्लेखनीय हैं।

हिन्दी के पाँच पौराणिक नाटकों के नाम-

हिन्दी के पौराणिक नाटकों में- (1) चक्रव्यूह, (2) गांधारी, (3) कर्त्तव्य, ( 4) कर्ण, (5) गंगा का बेटा – उल्लेखनीय हैं।

हिन्दी के किसी प्रसिद्ध ऐतिहासिक नाटककार का नाम-

हिन्दी के प्रसिद्ध नाटककारों में जयशंकरप्रसाद का नाम उल्लेखनीय है। ‘ध्रुवस्वामिनी’ और चन्द्रगुप्त’ इनके द्वारा रचित प्रसिद्ध नाटक हैं।

भारतेन्दु युग के प्रमुख नाटककारों के नाम-

भारतेन्दु युग के प्रमुख नाटककारों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के साथ-साथ प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, लाला श्रीनिवासदास, अम्बिकादत्त व्यास, राधाकृष्णदास एवं काशीनाथ खत्री आदि प्रमुख हैं।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटक-

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटकों के नाम निम्नलिखित हैं- (1) भारत दुर्दशा, (2) श्रीचन्द्रावली, (3) अँधेर नगरी, (4) सत्य हरिश्चन्द्र, (5) वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, (6) नीलदेवी, (7) सती-प्रताप, (8) विषस्य विषमौषधम्, (9) भारत जननी, (10) प्रेमयोगिनी।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटकों का विषय है-

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटक देशप्रेम, समाज-सुधार एवं राष्ट्रीय चेतना पर आधारित हैं।

भारतेन्दु युग के पाँच प्रसिद्ध नाटकों के नाम-

भारतेन्दु युग के प्रसिद्ध नाटक हैं-श्रीचन्द्रावली, प्रणयिनी-परिणय, संयोगिता-स्वयंवर, तृप्ता-संवरण, मयंक-मंजरी, नल-दमयन्ती, वीरांगना-रहस्य, सुदामा एवं कलिकौतुक आदि।

छायावाद युग के जयशंकरप्रसाद के प्रमुख नाटकों के नाम-

जयशंकरप्रसाद द्वारा रचित नाटक हैं- (1) विशाख, (2) अजातशत्रु, (8) कामना, (4) प्रायश्चित्त, (5) स्कन्द्रगुप्त, ( 6) चन्द्रगुप्त, (7) एक घूँट, (৪) घ्रुवस्वामिनी, (9) राज्यश्री, (10) करुणालय, (11) जनमेजय का नागयज्ञ।

प्रसाद के समकालीन प्रमुख नाटककारों के नाम-

प्रसाद के समकालीन नाटककारों में (1) हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ , ( 2 ) लक्ष्मीनारायण मिश्र, (3) गोविन्दवल्लभ पन्त, (4) सेठ गोविन्ददास आदि प्रमुख हैं।

प्रसादोत्तरकाल के प्रमुख नाटक-

प्रसादोत्तरकाल के प्रमुख नाटक ‘जय पराजय’, ‘अम्बपाली’, ‘अन्धा कुआँ’, ‘लहरों के राजहंस’, अंघा युग’, ‘मत्स्यगन्धा’ तथा ‘अँधेरे बन्द कमरे’ आदि हैं।

प्रसादोत्तर युग के प्रमुख नाटककारों के नाम-

प्रसादीत्तर (छायावादोत्तर) युग के प्रमुख नाटककार (1) उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’, (2) डॉ० लक्ष्मीनारायण लाल, (3) मोहन राकेश, (4) धर्मवीर भारती, (B) विष्णु प्रभाकर आदि है।

महत्वपूर्ण लिंक 

Disclaimersarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है | हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है| यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!