प्रमुख हिन्दी गद्य-विधाओं की परिभाषाएँ
प्रमुख हिन्दी गद्य-विधाओं की परिभाषाएँ
(1) नाटक- रंगमंच पर अभिनय द्वारा प्रस्तुत करने की दृष्टि से लिखी गई एक से अधिक अंकोंबाली वह गद्य-रचना ‘नाटक‘ कहलाती है, जिसमें अभिनय और संवाद पर विशेष बल दिया जाता है।
(2) एकांकी- एक अंक के नाटक को ‘एकांकी‘ कहा जाता है। इसमें किसी घटना-विशेष की प्रस्तुति की जाती है।
(3) उपन्यास- किसी विस्तृत कथावस्तु की पात्रों के चरित्र-चित्रण, संवाद, घटनाक्रमों एवं निश्चित उद्देश्य को लक्ष्य में रखकर की जानेवाली गद्य-रचना ‘उपन्यास‘ कहलाती है।
(4) कहानी- ‘कहानी‘ उस लघु गद्य-रचना को कहते हैं, जिसमें पात्रों के चरित्र चित्रण एवं घटनाक्रमों के माध्यम से उनके या समाज के चरित्र, भाव या विशिष्टता के किसी विशेष पक्ष को प्रस्तुत किया जाता है।
(5) निखन्ध- ‘निबन्ध‘ उस गद्य-रचना को कहते हैं, जिसमें लेखक किसी विषय पर अपने विचारों की स्वच्छन्द अभिव्यक्ति क्रमिक तथा प्रत्यक्ष रूप से करता है।
(6) आलोचना- किसी साहित्यिक रचना का भली-भाँति अध्ययन करके उसके गुण-दोषों का विश्लेषण करना उस रचना की ‘आलोचना’ करना कहा जाता है। आलोचना के लिए ‘समीक्षा’ अथवा ‘समालोचना’ शब्द का भी प्रयोग किया जाता है।
(7) जीवनी- किसी व्यक्ति-विशेष के जीवन की, जन्म से लेकर मृत्यु तक की प्रमुख घटनाओं के क्रमबद्ध विवरण को ‘जीवनी‘ कहा जाता है।
(8) आत्मकथा- जिस गद्य-रचना में लेखक अपने जीवन की स्मरणीय घटनाओं का क्रमबद्ध वर्णन एवं विश्लेषण करता है, उसे ‘आत्मकथा‘ कहते हैं।
(6) यात्रावृत्त- जिस गद्य रचना में रचनाकार किसी यात्रा के अनुभव का यथावत् कलात्मक वर्णन करता है, उसे ‘यात्रावृत्त‘ कहते हैं।
(10) संस्मरण– किसी स्मरणीय घटना या तथ्य को जब कोई व्यक्ति उसके यथार्थ रूप में सशक्त एवं रोचक भाषा-शैली में पुनः मूर्त करता है, तो उसे ‘संस्मरण‘ कहते हैं।
(11) रेखाचित्र- जिस गद्य-रचना में किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या भाव का कम-से-कम शब्दों में यथावत् चित्रांकन किया जाता है, उसे ‘रेखाचित्र‘ कहते हैं।
(12) गद्यकाव्य या गद्यगीत- जिस रचना में छन्द के बिना भी कविता के गुणों का समावेश होता है, उसे ‘गद्यकाव्य’ अथवा ‘गद्यगीत’ कहते हैं।
(13) रिपोर्ताज- जिस गद्य-रचना में किसी घटना का आँखों देखा विवरण प्रभादशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया ही, उसे ‘रिपोर्ताज’ कहते हैं।
(14) भेंटवात्त्ता अथवा साक्षात्कार- जब रचनाकार किसी व्यक्ति-विशेष से भेंट (मुलाकात) करके उसके व्यक्तित्व, भावों, क्रिया-कलापों आदि से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर रूप में साहित्य – रचना करता है तो वह रचना ‘मेंटवात्ता’ अथवा ‘साक्षात्कार’ कहलाती है।
(15) पत्र-साहित्य- जब लेखक अपने किसी मित्र, परिचित अथवा अन्य किसी को पत्र द्वारा अपने सम्बन्ध में या किसी महत्त्वपूर्ण समस्या के सम्बन्ध में मात्र सूचना, जिज्ञामा अथवा समाधान लिखकर भेजता है और उत्तर की अपेक्षा रखता है, तब वह ‘पत्र-साहित्य’ का सृजन करता है।
(16) डायरी- जब कोई कलात्मक अभिरुचि वाला व्यक्ति अपने जीवन में घटनेवाली महत्त्वपूर्ण घटनाओं का तिथिवद्ध एवं क्रमबद्ध विवरण लिखता है तो उस रचना को ‘डायरी’ कहते हैं।
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