औद्योगिक पिछड़ेपन 

औद्योगिक पिछड़ेपन | औद्योगिक पिछड़ेपन को दूर करने हेत सुझाव

औद्योगिक पिछड़ेपन | औद्योगिक पिछड़ेपन को दूर करने हेत सुझाव

औद्योगिक पिछड़ेपन से आशय

औद्योगिक पिछड़ेपन से आशय औद्योगीकरण के धीमे विकास से है। भारत में ओद्योगिक पिछड़ेपन की प्रवृत्तियाँ आरम्म से ही रही हैं। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

(1) माँग में कमी- औद्योगिक वस्तुओं की माँग समाज की क्रय शक्ति पर निर्भर करती है। भारत में प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर बहुत धीमी हे। इसका कारण गर-कृषीय क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का अभाव तथा कृषि उत्पादकता में कमी है। भारत विदेशी बाजारों में भी अपनी वस्तुओं की अधिक माँग उत्पन्न करने में असफल रहा है।

(2) अतिरिक्त आयोजित क्षमता- निवेश का निर्णय लेते समय उद्यमी न केवल वस्तुओं की माँग पर विचार करते हैं. बल्कि इसकी सम्भावी माँग को भी ध्यान में रखते हैं। अंतिरेक आयोजित क्षमता के कारण कुछ क्षमता अप्रयुक्त रहे जाता है।

(3) तकनीकी अविभाज्यताएँ- कुछ मशीनें और प्लाण्ट ऐसे होते हैं जो कि निर्दिष्ट क्षमता पर ही उत्पादन कर सकते हैं। यदि प्लाण्ट का उपयोग इन इकाइया के उत्पादन के लिए किया जाता है तो कुछ क्षमता अप्रयुक्त रह जाती है।

(4) आगतों की अल्पता- आगतों जैसे- कच्चा माल, शक्ति के साधन, यातायात, श्रम आदि की स्वल्पता के कारण भी आजकल क्षमता के अन्य उपयोग की समस्या उत्पन्न हो गई हैं।

(5) विदेशी विनिमय की कमी- कच्चे माल, मशीनों, उपस्कर संघटकों आदि के आयात के लिए पर्याप्त मात्रा में विदेशी विनिमय न मिलने के कारण भी उद्योग अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग करने में सफल नहीं होते।

औद्योगिक पिछड़ेपन को दूर करने हेत सुझाव

औद्योगिक पिछड़ेपन को दूर करने हेतु प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं-

(1) उत्पादन प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाली रुकावटों को दूर करने के लिए आधारभूत सुविधाओं का निर्माण किया जाना चाहिए।

(2) एक उद्योग की क्षमता ध्यान में रखकर ही उसे वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए।

(3) उद्योगों को कच्चा माल, शक्ति और यातायात के साधन पूँजी, श्रम आदि अधिक मात्रा में उपलब्ध होनी चाहिए।

(4) जो प्रबन्धक जान-बूझकर क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं करते, उनके खिलाफ उचित कार्यवाही की व्यवस्था होनी चाहिए।

(5) प्रबन्धकों की क्षमता के पूर्णतम उपयोग के लिए प्रेरित करने हेतु सरकार को उन्हें विभिन्न प्रकार के प्रोत्साहन देने चाहिए।

(6) निर्यात मूलक उद्योगों को बदलती हुई बाजार की दशाओं के अनुसार उत्पाद सम्मिश्रण के समायोजन के लिए विविधीकरण की छूट दी जानी चाहिए।

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